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अ॒यं ह॒ येन॒ वा इ॒दं स्व॑र्म॒रुत्व॑ता जि॒तम् । इन्द्रे॑ण॒ सोम॑पीतये ॥

English Transliteration

ayaṁ ha yena vā idaṁ svar marutvatā jitam | indreṇa somapītaye ||

Pad Path

अ॒यम् । ह॒ । येन॑ । वै । इ॒दम् । स्वः॑ । म॒रुत्व॑ता । जि॒तम् । इन्द्रे॑ण । सोम॑ऽपीतये ॥ ८.७६.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:76» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:8» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

अब प्राण मित्र परेश की महिमा का गान कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! मैं उपासक (न) इस समय (वृञ्जसे) अन्तःकरण और बाहर के निखिल शत्रुओं के निपातन के लिये यद्वा (न+वृञ्जसे) मुझको और अन्यान्य निखिल प्राणियों को न त्याग करने के लिये किन्तु सबको अपने निकट ग्रहण के लिये (इमम्+नु+इन्द्रम्) इस परमैश्वर्य्यसम्पन्न जगदीश की (हुवे) प्रार्थना और आवाहन करता हूँ। तुम लोग भी इसी प्रकार करो। जो (मायिनम्) महाज्ञानी, सर्वज्ञ और महामायायुक्त है, (ओजसा) स्व अचिन्त्यशक्ति से (ईशानम्) जगत् का शासन करता है और (मरुत्वन्तम्) जो प्राणों का अधिपति और सखा है ॥१॥
Connotation: - जिस कारण वह इन्द्रवाच्य ईश्वर प्राणों का अधिपति, मित्र और जगत् का शासक महाराज है, अतः सब मित्र उसकी स्तुति करें ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

प्राण मित्रपरेशस्य महिमाऽथ गीयते।

Word-Meaning: - हे मनुष्याः ! अहमुपासकः। न=सम्प्रति। वृञ्जसे=निखिलान्तःशत्रुनिपातनाय। यद्वा न वृञ्जसे मम न त्यागाय किन्तु ग्रहणाय। मरुत्वन्तम्=प्राणपतिम्। मरुतः=प्राणाः। तेषां यः सखा स मरुत्वान्। ओजसा=स्वशक्त्या। ईशानम्=जगति=शासकम्। मायिनं=महाप्रज्ञं सर्वज्ञम्। इममिन्द्रन्नु। हुवे=प्रार्थये। तद्वद् यूयमपि तमाह्वयध्वम् ॥१॥