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त्वं न॑ इन्द्रासां॒ हस्ते॑ शविष्ठ दा॒वने॑ । धा॒नानां॒ न सं गृ॑भायास्म॒युर्द्विः सं गृ॑भायास्म॒युः ॥

English Transliteration

tvaṁ na indrāsāṁ haste śaviṣṭha dāvane | dhānānāṁ na saṁ gṛbhāyāsmayur dviḥ saṁ gṛbhāyāsmayuḥ ||

Pad Path

त्वम् । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । आ॒सा॒म् । हस्ते॑ । श॒वि॒ष्ठ॒ । दा॒वने॑ । धा॒नाना॑म् । न । सम् । गृ॒भा॒य॒ । अ॒स्म॒ऽयुः । द्विः । सम् । गृ॒भा॒य॒ । अ॒स्म॒ऽयुः ॥ ८.७०.१२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:70» Mantra:12 | Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:8» Mantra:12


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उस अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - (वसो) हे सर्वजीवों को वासप्रद तथा सर्वत्र निवासिन् देव ! (नः+सु+उ) हम लोगों को अच्छे प्रकार (महे+राधसे) महती सम्पत्ति के लिये (उन्मृशस्व) ऊपर उठा। (मघवन्) हे सर्वधनसम्पन्न (मह्यै+मघत्तये) महा धन के लिये हमको (सु+उ) अच्छे प्रकार (उन्मृशस्व) ऊपर उठा। (इन्द्र) हे इन्द्र ! (महे+श्रवसे) प्रशंसनीय प्रसिद्धि के लिये हमको (उत्) ऊपर उठा ॥९॥
Connotation: - इस ऋचा में महासम्पत्ति महाधन और महाकीर्ति के लिये ईश्वर से प्रार्थना है। निःसन्देह जो तन मन से ईश्वर के निकट प्राप्त होते हैं, उनका मनोरथ अवश्य सिद्ध होता है, उसमें विश्वास कर उसकी आज्ञा पर चलो ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - हे वसो=हे सर्वजीवेभ्यो वासप्रद तथा सर्वत्र निवासिन् ! हे शूर=महाशक्ते ! नोऽस्मान्। सु=सुष्ठु। उ=निश्चयेन। महे=महते उत्तमाय। राधसे=सम्पत्त्यै। उन्मृशस्व=उत्थापय। हे मघवन् ! मह्यै=महते। मघत्तये=धनदानाय। उन्मृशस्व। हे इन्द्र ! महे=महते। श्रवसे=कीर्त्तये। उन्मृशस्व ॥९॥