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गि॒रय॑श्चि॒न्नि जि॑हते॒ पर्शा॑नासो॒ मन्य॑मानाः । पर्व॑ताश्चि॒न्नि ये॑मिरे ॥

English Transliteration

girayaś cin ni jihate parśānāso manyamānāḥ | parvatāś cin ni yemire ||

Pad Path

गि॒रयः॑ । चि॒त् । नि । जि॒ह॒ते॒ । पर्शा॑नासः । मन्य॑मानाः । पर्व॑ताः । चि॒त् । नि । ये॒मि॒रे॒ ॥ ८.७.३४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:7» Mantra:34 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:34


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SHIV SHANKAR SHARMA

मरुतों का स्वभाव दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - जैसे बाह्यजगत् में वायु के प्रकोप से (गिरयः+चित्+निजिहते) पर्वत भी चलायमान से हो जाते हैं और (पर्शानासः) पीड्यमान के समान (मन्यमानाः) माने जाते हैं और (पर्वताः+चित्) मेघ भी (नि+येमिरे) इतस्ततः पलायमान होते हैं, इसी प्रकार अन्तःशरीर में भी प्राण के प्रकोप से इन्द्रियों में महान् उपद्रव उपस्थित होता है ॥३४॥
Connotation: - प्रथम सब प्रकार इन्द्रियों को वश में करे। यह शिक्षा इससे देते हैं ॥३४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पर्शानासः) उनके सताये हुए (मन्यमानाः) अभिमानवाले (गिरयः, चित्) पर्वत भी (निजिहते) काँप उठते हैं, क्योंकि (पर्वताः, चित्) वह पर्वत भी (नियेमिरे) उनके नियम से बँधे होते हैं ॥३४॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि उपर्युक्त निर्भीक योद्धाओं के बलपूर्ण प्रहार से मानो पर्वत भी काँपने लगते हैं अर्थात् विषम और अति दुर्गम प्रदेश भी उनके आक्रमण से नहीं बच सकते, या यों कहो कि जल, स्थल तथा निम्नोन्नत सब प्रदेशों में उनका पूर्ण प्रभुत्व होता है ॥३४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

मरुत्स्वभावं दर्शयति।

Word-Meaning: - यथा बाह्ये जगति। आगतेषु मरुत्सु। गिरयश्चित्=पर्वता अपि। निजिहते। पर्शानासः=पीड्यमानाः। मन्यमानाः=मन्यन्तेव=दृश्यन्ते। तथा। पर्वताः=मेघाश्चित्। नियेमिरे=नियम्यन्ते। तथैव अन्तः शरीरेऽपि प्राणप्रकोपे सर्वाणि इन्द्रियाणि चलन्ति। अतस्ते सदा नियम्या इत्यर्थः ॥३४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पर्शानासः) तैर्दण्ड्यमानाः (मन्यमानाः) अभिमन्यमानाः (गिरयश्चित्) पर्वताः (निजिहते) कम्पन्ते, यतः (पर्वताः) ते पर्वताः (नियेमिरे, चित्) नियमनं प्राप्नुवन्ति ॥३४॥