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क्व॑ नू॒नं सु॑दानवो॒ मद॑था वृक्तबर्हिषः । ब्र॒ह्मा को व॑: सपर्यति ॥

English Transliteration

kva nūnaṁ sudānavo madathā vṛktabarhiṣaḥ | brahmā ko vaḥ saparyati ||

Pad Path

क्व॑ । नू॒नम् । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । मद॑थ । वृ॒क्त॒ऽब॒र्हि॒षः॒ । ब्र॒ह्मा । कः । वः॒ । स॒प॒र्यति॒ ॥ ८.७.२०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:7» Mantra:20 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:20


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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रियों की चञ्चलता दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (सुदानवः) हे शोभनदानदाता (वृक्तबर्हिषः) यज्ञप्रवर्तित= प्राणायामरूप यज्ञ में प्रयुक्त प्राणो ! आप (क्व) कहाँ (नूनम्) इस समय (मदथ) आनन्द कर रहे हैं (कः+ब्रह्मा) कौन ब्रह्मा (वः) आपकी (सपर्यति) सेवा कर रहा है ॥२०॥
Connotation: - भाव इसका यह है कि इन्द्रियगण अति चञ्चल हैं, यद्यपि शुभ कर्म में इनको विद्वान् लगाते हैं, तथापि वे इधर-उधर भाग जाते हैं, उस समय उपासक की समस्त क्रिया नष्ट हो जाती है, अतः प्राणों को विवश करने के लिये सम्बोधनपूर्वक यहाँ वर्णन है ॥२०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुदानवः) हे शोभन दानवाले ! (वृक्तबर्हिषः) पृथक् दिया गया है आसन जिन्हों को, ऐसे आप (क्व, नूनम्, मदथाः) कहाँ स्थित होकर मनुष्यों को हर्षित कर रहे हैं (कः, ब्रह्मा) कौन विद्वान् (वः) आपकी (सपर्यति) पूजा करता है ॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र का आशय यह है कि जिन लोगों को यज्ञ में विशेष=असाधारण आसन दिया जाता है, वे “वृक्तबर्हिष” कहे जाते हैं और ऐसे असाधारण विद्वानों के गुणगौरव को चतुर्वेद का वक्ता ब्रह्मा ही जान सकता है, अन्य नहीं और वह विशेषतया पूजा के योग्य होते हैं ॥२०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रियचञ्चलत्वं प्रदर्शयन्ति।

Word-Meaning: - हे सुदानवः। शोभनदानाः=हे वृक्तबर्हिषः यज्ञप्रवर्तिता मरुतः। यूयम्। क्व=कुत्र प्रदेशे। नूनम् इदानीम्। मदथ=माद्यथ। कश्च ब्रह्मा। वः=युष्मान्। सपर्यति=पूजयति ॥२०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुदानवः) हे शोभनदानाः ! (वृक्तबर्हिषः) पृथग्दत्तासनाः यूयम् (नूनम्) निश्चयम् (क्व, मदथाः) क्व जनान् हर्षयथ (कः, ब्रह्मा) को विद्वान् वा (वः, सपर्यति) युष्मान् पूजयति ॥२०॥