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प्र यद्व॑स्त्रि॒ष्टुभ॒मिषं॒ मरु॑तो॒ विप्रो॒ अक्ष॑रत् । वि पर्व॑तेषु राजथ ॥

English Transliteration

pra yad vas triṣṭubham iṣam maruto vipro akṣarat | vi parvateṣu rājatha ||

Pad Path

प्र । यत् । वः॒ । त्रि॒ऽस्तुभ॑म् । इष॑म् । मरु॑तः । विप्रः॑ । अक्ष॑रत् । वि । पर्व॑तेषु । रा॒ज॒थ॒ ॥ ८.७.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:7» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

इस सूक्त में मरुन्नामधारी प्राणों की स्तुति की जाती है।

Word-Meaning: - (मरुतः) हे आन्तरिक प्राणो ! (यद्) जब (विप्रः) मेधावी योगाभ्यासी जन (वः) आपको (त्रिष्टुभम्+इषम्) रेचक, पूरक और कुम्भक तीन प्रकार के (इषम्) बल को (प्र+अक्षरत्) देता है (पर्वतेषु) तब आप मस्तिष्कों पर (विराजथ) विराजमान होते हैं ॥१॥
Connotation: - यहाँ मरुत् शब्द से सप्तप्राणों का ग्रहण है−नयनद्वय, कर्णद्वय, घ्राणद्वय और एक जिह्वा। इन सातों में व्याप्त वायु का नाम मरुत् है, अतएव सप्त मरुत् का वर्णन अधिक आता है। एक-२ की वृत्ति मानो सात सात हैं, अतः ७x७=४९ मरुत् माने जाते हैं, मरुत् नाम यहाँ प्राणों का ही है, इसमें एक प्रमाण यह है कि इन्द्र का नाम मरुत्वान् है। इन्द्र=जीवात्मा। इसका साथी यह प्राण है, अतः इन्द्र मरुत्वान् कहलाता है। यह अध्यात्म अर्थ है, भौतिकार्थ में मरुत् शब्द वायुवाची है, लौकिकार्थ में मरुत् शब्द वैश्यवाची और सेनावाचक होता है। भावार्थ इसका यह है कि प्रथम योगाभ्यास के लिये विप्र अर्थात् परम बुद्धिमान् बनो, पश्चात् इन नयनादि इन्द्रियों को वश में करने के लिये प्राणायाम करो, इस क्रिया से तुम्हारा शिर अतिशय बलिष्ठ और ज्ञान-विज्ञान सहित होगा, हे मनुष्यों ! उस योगरत शिर से प्राणियों का और अपना उद्धार करो ॥१॥
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ARYAMUNI

इस सूक्त में क्षात्रबल का वर्णन करते हुए प्रथम योद्धा लोगों के गुण कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (मरुतः) हे शीघ्रगतिवाले योद्धा लोगो ! (यत्) जो (विप्रः) मेधावी मनुष्य (वः) आपके (इषम्) इष्ट धन को (त्रिष्टुभम्) तीन स्थानों में विभक्त कर (प्राक्षरत्) व्यय करता है, इससे आप लोग (पर्वतेषु) दुर्गप्रदेशों में (विराजथ) विशेष करके प्रकाशमान हो रहे हैं ॥१॥
Connotation: - क्षात्रबल वही वृद्धि को प्राप्त हो सकता है, जिसके नेता विप्र=बुद्धिमान् हों। इस मन्त्र में बुद्धिमान् मन्त्री प्रधान क्षात्रबल का निरूपण किया है। विद्यासभा के लिये, सैनिक बल के लिये, प्रजोपकारी वापी कूप तडाग राजपथादिकों के लिये व्यय करना, यही तीन प्रकार का व्यय है ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

प्राणाः स्तूयन्ते।

Word-Meaning: - हे मरुतः=प्राणाः। यद्=यदा। विप्रः=मेधावी= प्राणायामाभ्यासी। वः=युष्मभ्यम्। त्रिष्टुभम्+इषम्= रेचकपूरककुम्भकाख्याम्। इषम्=बलम्। प्र+अक्षरत्= प्रददाति। तदा। यूयम्। पर्वतेषु=शिरःसु। विराजथ ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ क्षात्रबलं वर्णयन्नादौ योद्धृगुणान् वर्णयति।

Word-Meaning: - (मरुतः) हे शीघ्रगतयो योद्धारः ! (यत्) यस्मात् (विप्रः) मेधाविजनः (वः) युष्माकम् (इषम्) इष्यमाणं धनम् (त्रिष्टुभम्) त्रिषु रुध्यमानं (प्राक्षरत्) विगमयति, तेन (पर्वतेषु) दुर्गप्रदेशेषु (विराजथ) विशेषेण राजध्वे ॥१॥