Go To Mantra

व॒यं घा॑ ते॒ त्वे इद्विन्द्र॒ विप्रा॒ अपि॑ ष्मसि । न॒हि त्वद॒न्यः पु॑रुहूत॒ कश्च॒न मघ॑व॒न्नस्ति॑ मर्डि॒ता ॥

English Transliteration

vayaṁ ghā te tve id v indra viprā api ṣmasi | nahi tvad anyaḥ puruhūta kaś cana maghavann asti marḍitā ||

Pad Path

व॒यम् । घ॒ । ते॒ । त्वे इति॑ । इत् । ऊँ॒ इति॑ । इन्द्र॑ । विप्राः॑ । अपि॑ । स्म॒सि॒ । न॒हि । त्वत् । अ॒न्यः । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । कः । च॒न । मघ॑ऽवन् । अस्ति॑ । म॒र्डि॒ता ॥ ८.६६.१३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:66» Mantra:13 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:50» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:13


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! (अस्य+तविषीः) इसकी शक्तियाँ (कदू) कितनी (महीः) बड़ी पूजनीय और (अधृष्टाः) अक्षुण्ण हैं। (वृत्रघ्नः) इस निखिल दुःखनिवारक भगवान् का यश (कदु) कितना (अस्तृतम्) अविनश्वर और महान् है। हे मनुष्यों ! (इन्द्रः) वह परमात्मा मनुष्यजाति की भलाई के लिये (विश्वान्) समस्त (बेकनाटान्) सूदखोरों को (क्रत्वा) उसके कर्म के अनुसार (अहर्दृशः) इसी जन्म में सूर्य्य को देखने देता है, दूसरे जन्म में उनको अन्धकार में फेंक देता है (उत) और (पणीन्) जो वणिक् मिथ्या व्यवहार करते हैं, असत्य बोलते हैं, असत्य तौलते, गौ आदि उपकारी पशुओं को गुप्त रीति से कसाइयों के हाथ बेचते हैं, इस प्रकार के मिथ्या व्यवसायी को वेद में पणि कहते हैं, उनको भी वह इन्द्र (अभि) चारों तरफ से समाजों से दूर फेंक देता है ॥१०॥
Connotation: - बेकनाट−संस्कृत में इसके कुसीदी, वृद्धिजीवी आदि नामों से पुकारते हैं। जो द्विगुण त्रिगुण सूद खाता है। शास्त्र, राजा और समाज के नियम से जितना सूद बंधा हुआ है, उससे द्विगुण त्रिगुण जो सूद लेता है, वह बेकनाट है। इस शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार लोग करते हैं। बे+क+नाट=द्विशब्द के अर्थ में बे शब्द है। मैं एक रुपया आज देता हूँ, ठीक एक वर्ष में दो रुपये मुझे दोगे, इस प्रकार गुण प्राप्त होने पर जो नाट=नाचता है, उसे बेकनाट कहते हैं। उसकी शक्ति अनन्त है। वह जगत् के शासन के लिये दुष्टों पर सदा शासन करता है, यह इसका आशय है ॥१०॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे मनुष्याः ! अस्य+तविषीः=शक्तयः। कदू=कियत्यः। महीः=महत्यः। अधृष्टाः=अधर्षणीयाश्च। अस्य वृत्रघ्नः=वृत्रहन्तुः। कर्म वा यशो वा। कदु=कियत्। अस्तृतम्=अविनश्वरं महच्च। इन्द्रः खलु। विश्वान्=सर्वान्। बेकनाटान्=वार्धुषिकान्। क्रत्वा= कर्मणा। अहर्दृशः करोति। उत। पणीम्=मिथ्यावणिजश्च। अभिभवति=दूरीकरोति ॥१०॥