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एहि॒ प्रेहि॒ क्षयो॑ दि॒व्या॒३॒॑घोष॑ञ्चर्षणी॒नाम् । ओभे पृ॑णासि॒ रोद॑सी ॥

English Transliteration

ehi prehi kṣayo divy āghoṣañ carṣaṇīnām | obhe pṛṇāsi rodasī ||

Pad Path

आ । इ॒हि॒ । प्र । इ॒हि॒ । क्षयः॑ । दि॒वि । आ॒ऽघोष॑न् । च॒र्ष॒णी॒णाम् । आ । उ॒भे इति॑ । पृ॒णा॒सि॒ । रोद॑सी॒ इति॑ ॥ ८.६४.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:64» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:44» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रवाच्येश्वर पुनरपि इस सूक्त से स्तुत और प्रार्थित होता है।

Word-Meaning: - (अद्रिवः) हे संसाररचयिता महेश ! हमारे (स्तोमाः) स्तव (त्वा) तुझको (उत्) उत्कृष्टरूप से (मन्दन्तु) प्रसन्न करे और तू (राधः) जगत् के पोषण के लिये पवित्र अन्न (कृणुष्व) उत्पन्न कर और (ब्रह्मद्विषः) जो ईश्वर वेद और शुभकर्मों के विरोधी हैं, उनको (अव+जहि) यहाँ से दूर ले जाएँ ॥१॥
Connotation: - इस सूक्त में बहुत सरल प्रार्थना की गई है, भाव भी स्पष्ट ही है। हम लोग अपने आचरण शुद्ध करें और हृदय से ईश्वर की प्रार्थना करें, जिससे हमारे कोई शत्रु न रहने पावें ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रः पुनरप्यनेन सूक्तेन स्तूयते प्रार्थ्यते च।

Word-Meaning: - हे अद्रिवः=संसारविधातः ! अस्माकम्। स्तोमाः= स्तुतयः। त्वा=त्वाम्। उत्=उत्कृष्टं यथा। मन्दन्तु= प्रसादयन्तु। हे भगवन् ! जगत्पोषणाय। राधः=भोज्यम्। कृणुष्व=कुरु। अपि च ब्रह्मद्विषः अवजहि ॥१॥