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स प्र॒त्नथा॑ कविवृ॒ध इन्द्रो॑ वा॒कस्य॑ व॒क्षणि॑: । शि॒वो अ॒र्कस्य॒ होम॑न्यस्म॒त्रा ग॒न्त्वव॑से ॥

English Transliteration

sa pratnathā kavivṛdha indro vākasya vakṣaṇiḥ | śivo arkasya homany asmatrā gantv avase ||

Pad Path

सः । प्र॒त्नऽथा॑ । क॒वि॒ऽवृ॒धः । इन्द्रः॑ । वा॒कस्य॑ । व॒क्षणिः॑ । शि॒वः । अ॒र्कस्य॑ । होम॑नि । अ॒स्म॒ऽत्रा । ग॒न्तु॒ । अव॑से ॥ ८.६३.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:63» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:42» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

इस सूक्त से इन्द्र की स्तुति की जाती है।

Word-Meaning: - (सः) वह पूर्वोक्त सर्वत्र प्रसिद्ध स्वयंसिद्ध इन्द्र नामधारी परेश (पूर्व्यः) सर्वगुणों से पूर्ण और सबसे प्रथम है और (महानाम्+वेनः) पूज्य महान् पुरुषों का भी वही कमनीय अर्थात् वाञ्छित है। वही (क्रतुभिः) स्वकीय विज्ञानों और कर्मों से (आनजे) सर्वत्र प्राप्त है। पुनः (यस्य+द्वारा) जिसकी सहायता से (पिता) पालक (मनुः) मन्ता, बोद्धा (धियः) विज्ञानों और कर्मों को (आनजे) पाते हैं ॥१॥
Connotation: - देव शब्द सर्वपदार्थवाची है। यह वेद में प्रसिद्ध है। धी इस शब्द के अनेक प्रयोग हैं। विज्ञान, कर्म, ज्ञान, चैतन्य आदि इसके अर्थ होते हैं। अर्धर्च का आशय यह है कि उस ईश्वर की कृपा से ही मननशील पुरुष प्रत्येक पदार्थ में ज्ञान और कर्म देखते हैं। प्रत्येक पदार्थ को ज्ञानमय और कर्ममय समझते हैं। यद्वा प्रत्येक पदार्थ में ईश्वरीय कौशल और क्रिया देखते हैं ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अनेन सूक्तेनेन्द्रः स्तूयते।

Word-Meaning: - स इन्द्रवाच्य ईश्वरः। पूर्व्यः=पूर्णः पुरातनश्च। पुनः। महानां=पूज्यानामपि विदुषाम्। वेनः=कमनीयः। ईदृशः स हीश्वरः। क्रतुभिः=स्वप्रज्ञाभिः स्वकर्मभिश्च। आनजे= सर्वत्र प्राप्तोऽस्ति। यस्य द्वारा=यस्य साहाय्येन। पिता=पालकः। मनुः=मन्ता बोद्धा आचार्य्यादिः। देवेषु=निखिलेषु पदार्थेषु। धियः=विज्ञानानि विद्याः कर्माणि च। आनजे=प्राप्नोति। आनजिः प्राप्तिकर्मा ॥१॥