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अव॑ चष्ट॒ ऋची॑षमोऽव॒ताँ इ॑व॒ मानु॑षः । जु॒ष्ट्वी दक्ष॑स्य सो॒मिन॒: सखा॑यं कृणुते॒ युजं॑ भ॒द्रा इन्द्र॑स्य रा॒तय॑: ॥

English Transliteration

ava caṣṭa ṛcīṣamo vatām̐ iva mānuṣaḥ | juṣṭvī dakṣasya sominaḥ sakhāyaṁ kṛṇute yujam bhadrā indrasya rātayaḥ ||

Pad Path

अव॑ । च॒ष्टे॒ । ऋची॑षमः । अ॒व॒तान्ऽइ॑व । मानु॑षः । जु॒ष्ट्वी । दक्ष॑स्य । सो॒मिनः॑ । सखा॑यम् । कृ॒णु॒ते॒ । युज॑म् । भ॒द्राः । इन्द्र॑स्य । रा॒तयः॑ ॥ ८.६२.६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:62» Mantra:6 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:40» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:7» Mantra:6


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (वीर्य्याणि+करिष्यतः+तव) संसार के स्थापन, रक्षण और संहरण तत्तद्रूप पराक्रम करते हुए तेरा (तत्+प्रवाच्यम्) वह महत्त्व सदा प्रशंसनीय है, क्योंकि तू (जीरदानुः) भक्तों को शीघ्र दान और उद्धार करनेवाला है और तू (अहितेन+अर्वता) स्वयं प्रवृत्त इस संसार को कर्मानुसार (सिषासति) सकल सुख दे रहा है ॥३॥
Connotation: - ईश्वर की कीर्ति और उसकी दया सदा गेय है, क्योंकि इससे प्रथम मन की प्रसन्नता रहती और कृतज्ञता का प्रकाश होता है और उसके उपकार अनन्त हैं, इसको सब जानें, जिससे आत्मा शुद्ध होकर उसकी ओर लगे ॥३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! वीर्य्याणि करिष्यतस्तव। तन्महत्त्वम्। प्रवाच्यं=प्रशंसनीयम्। यतस्त्वम्। अहितेन=अप्रेरितेन= स्वयं प्रवृत्तेन। अर्वता=गच्छता संसारेण सह। जीरदानुः=क्षिप्रप्रदानः। सिषासति=संभक्तुमिच्छति। भद्रा इत्यादि ॥३॥