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इन्द्र॑मु॒क्थानि॑ वावृधुः समु॒द्रमि॑व॒ सिन्ध॑वः । अनु॑त्तमन्युम॒जर॑म् ॥

English Transliteration

indram ukthāni vāvṛdhuḥ samudram iva sindhavaḥ | anuttamanyum ajaram ||

Pad Path

इन्द्र॑म् । उ॒क्थानि॑ । व॒वृ॒धुः॒ । स॒मु॒द्रम्ऽइ॑व । सिन्ध॑वः । अनु॑त्तऽमन्युम् । अ॒जर॑म् ॥ ८.६.३५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:35 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:35


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SHIV SHANKAR SHARMA

कैसा वचन बोलना चाहिये, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (सिन्धवः+इव) जैसे नदियाँ (समुद्रम्) समुद्र को बढ़ाती हैं या प्रसन्न करती हैं, तद्वत् (उक्थानि) शोभन सत्यवचन (इन्द्रम्) परमात्मा को (वावृधुः) प्रसन्न करते हैं। जो परमदेव (अनुत्तमन्युम्) अप्रेरितक्रोध है, असत्यवचन से जिसका क्रोध बहुत बढ़ता है और उसको कोई भी स्तोत्र रोक नहीं सकता अर्थात् जो सदा सत्य है और सत्य को ही चाहता है। पुनः (अजरम्) जरा आदि सर्व प्रकार के विकारों से रहित है ॥३५॥
Connotation: - पवित्र और सत्यवचन वक्तव्य हैं, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥३५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सिन्धवः) जिस प्रकार नदियें (समुद्रम्) समुद्र को बढ़ाती हैं, इसी प्रकार (उक्थानि) स्तोत्र (अनुत्तमन्युं) अप्रतिहतप्रभाववाले (अजरम्) जरारहित (इन्द्रं) परमात्मा को (वावृधुः) बढ़ाते हैं ॥३५॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव स्पष्ट है कि जिस प्रकार नदियें समुद्र को प्राप्त होकर उसको महान् करती हैं, इसी प्रकार वेदवाणियें उस प्रभावशाली तथा अजर अमर अभयत्वादि गुणोंवाले परमात्मा को बढ़ाती हैं अर्थात् उसका यश विस्तृत करती हैं ॥३५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

कीदृशं वचनं वक्तव्यमित्याचष्टे।

Word-Meaning: - उक्थानि=यानि शोभनानि सत्यानि वचनानि सन्ति। तानि। अनुत्तमन्युम्=अनुत्तोऽप्रेरितः परैरनभिभूतो मन्युः क्रोधो यस्य सोऽनुत्तमन्युस्तम्। पुनः। अजरम्=जराद्यवस्थारहितम्=सदैकरसम्। इन्द्रम्= परमात्मानम्। सिन्धवः=नद्यः समुद्रमिव। वावृधुः=वर्धयन्ति=प्रसादयन्ति ॥३५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सिन्धवः) नद्यः (समुद्रम्, इव) यथा समुद्रं तथा (उक्थानि) स्तोत्राणि (अनुत्तमन्युम्) अप्रतिहतप्रभावम् (अजरम्) जरारहितम् (इन्द्रम्) परमात्मानम् (वावृधुः) वर्धयन्ति ॥३५॥