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कण्वा॑स इन्द्र ते म॒तिं विश्वे॑ वर्धन्ति॒ पौंस्य॑म् । उ॒तो श॑विष्ठ॒ वृष्ण्य॑म् ॥

English Transliteration

kaṇvāsa indra te matiṁ viśve vardhanti pauṁsyam | uto śaviṣṭha vṛṣṇyam ||

Pad Path

कण्वा॑सः । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । म॒तिम् । विश्वे॑ । व॒र्ध॒न्ति॒ । पौंस्य॑म् । उ॒तो इति॑ । श॒वि॒ष्ठ॒ । वृष्ण्य॑म् ॥ ८.६.३१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:31 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:31


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SHIV SHANKAR SHARMA

विद्वानों का कर्त्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - जैसे सुपुत्र पैतृक धन को वैसे ही विद्वान् ईश्वरप्रदत्त सर्ववस्तु को बढ़ाते हैं। हम साधारण जनों को भी वैसा करना चाहिये, यह शिक्षा इससे दी जाती है। यथा−(इन्द्र) हे इन्द्र ! (ते) आपकी दी हुई (मतिम्) बुद्धि को तथा (पौंस्यम्) पुरुषार्थ को (विश्वे) सब (कण्वासः) भक्तजन (वर्धन्ति) बढ़ाते रहते हैं (शविष्ठ) हे बलवत्तम सर्वशक्तिमन् इन्द्र ! (उतो) और वे विद्वान् (वृष्ण्यम्) प्रजाओं में ज्ञानादिधनों की वर्षा करने की शक्ति को भी बढ़ाते ही रहते हैं। वे क्षणमात्र भी व्यर्थ नहीं बिताते। हे मनुष्यों ! तुम भी विद्वानों का अनुकरण करो ॥३१॥
Connotation: - ईश्वर ने हम लोगों को बहुत से अद्भुत पदार्थ दिए हैं, जैसे इस शरीर में बुद्धि, विवेक और स्मरणशक्ति आदि और बाह्यजगत् में नाना खाद्य पेय आदि पदार्थ मेधावी उनको पाकर और अच्छे प्रकार बढ़ाकर महा महा धनी होते हैं, परन्तु मूढजन उनको पाकर दुःख भोगते हैं, यह आश्चर्य की बात है ॥३१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शविष्ठ) हे अत्यन्त बलवाले (इन्द्र) परमात्मन् ! (विश्वे, कण्वासः) सब विद्वान् (ते) आपके (मतिम्) ज्ञान (पौंस्यम्) प्रयत्न (उत) तथा (वृष्ण्यम्) बलयुक्त कर्म को (वर्धन्ति) बढ़ाते हैं ॥३१॥
Connotation: - उस अनन्त पराक्रमयुक्त परमात्मा के ज्ञान, प्रयत्न तथा कर्मों की सब विद्वान् लोग प्रशंसा करते हुए उनको बढ़ाते अर्थात् प्रशंसायुक्त वाणियों से उनका विस्तार करते हैं ॥३१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

विदुषां कर्त्तव्यमाचष्टे।

Word-Meaning: - पितृधनं सुपुत्रा इव विद्वांस ईश्वरप्रदत्तं सर्वं वस्तु वर्धयन्ति। अस्माभिरपि तथा कर्त्तव्यमित्यनया शिक्षते। यथा−हे इन्द्र ! ते=तव प्रदत्ताम्। मतिम्=बुद्धिम्। पौंस्यम्=पुंस्त्वं पौरुषञ्च। विश्वे=सर्वे। कण्वासः=तव भक्ताः स्तुतिपाठकाः। वर्धन्ति=वर्धयन्ति। श्रवणमनननिदिध्यासनैर्विस्तारयन्ति। हे शविष्ठ=शवस्वितम ! बलवत्तम। विन्मतोर्लुक्टेरिति टिलोपः। हे इन्द्र ! उतो=अपि च। वृष्ण्यम्=वृषत्वं ज्ञानादिवर्षयितृत्वञ्च वर्धयन्ति। क्षणमपि ते व्यर्थं न यापयन्तीयर्त्थः ॥३१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शविष्ठ) हे बलवत्तम (इन्द्र) परमात्मन् ! (विश्वे, कण्वासः) सर्वे विद्वांसः (ते) तव (मतिम्) ज्ञानं (पौंस्यम्) पुरुषार्थम् (उत) अथ (वृष्ण्यम्) बलयुक्तकर्म च (वर्धन्ति) वर्धयन्ति ॥३१॥