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अ॒हं प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना॒ गिर॑: शुम्भामि कण्व॒वत् । येनेन्द्र॒: शुष्म॒मिद्द॒धे ॥

English Transliteration

aham pratnena manmanā giraḥ śumbhāmi kaṇvavat | yenendraḥ śuṣmam id dadhe ||

Pad Path

अ॒हम् । प्र॒त्नेन॑ । मन्म॑ना । गिरः॑ । शु॒म्भा॒मि॒ । क॒ण्व॒ऽवत् । येन॑ । इन्द्रः॑ । शुष्म॑म् । इत् । द॒धे ॥ ८.६.११

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:11 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:11


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SHIV SHANKAR SHARMA

प्रथम वाणी शोधनीय है, यह शिक्षा इससे देते हैं।

Word-Meaning: - उपासक स्वकर्त्तव्य का वर्णन करता है। (अहम्) मैं उपासक (प्रत्नेन) पुराण=नित्य (मन्मना) मननसाधन वेदवचन से (कण्ववत्) ग्रन्थकारवत् (गिरः) वचनों को (शुम्भामि) पवित्र करता हूँ। जैसे ग्रन्थकार ईश्वरसम्बन्धी स्तोत्ररचना से निजवाणी को शुद्ध पवित्र बनाता है, वैसे ही मैं भी नित्य वेदाध्ययन से स्ववाणी को पवित्र करता हूँ। लोगों को भी ऐसा करना चाहिये, यह शिक्षा है। (येन) जिस मेरे व्यापार से (इन्द्रः) परमात्मा (शुष्मम्+इत्) प्रसन्नता को ही (दधे) दिखलाता है ॥११॥
Connotation: - जैसे पुरातन ऋषि और विद्वान् ईश्वर की आज्ञा के अनुसरण से और लोकहित करने से वाणी, मन और शरीर पवित्र किया करते थे, वैसे ही आप आधुनिक जन भी उनके पथ पर चलिये। इसी से भगवान् प्रसन्न होगा ॥११॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अहम्) मैं (प्रत्नेन, मन्मना) नित्य परमात्मज्ञान से (कण्ववत्) विद्वान् के सदृश (गिरः) वाणियों को (शुम्भामि) अलंकृत करता हूँ, (येन) जिस ज्ञान से (इन्द्रः) परमात्मा (शुष्मम्, इत्, दधे) मेरे में बल को धारण करता है ॥११॥
Connotation: - मैं परमात्मज्ञान से सत्याश्रित होकर महर्षिसदृश परमात्मवाणियों का अभ्यास करता हुआ उसकी कृपा से बल को धारण करता हूँ। जो अन्य भी वेदवाणियों से अंलकृत होते हैं, वे तेजस्वी जीवनवाले होकर आनन्दित होते हैं ॥११॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

प्रथमं वाणी शोधयितव्येति शिक्षते।

Word-Meaning: - उपासकः स्वकर्त्तव्यमाचष्टे। अहमुपासकः। प्रत्नेन=पुराणेन नित्येन। मन्मना=मननसाधनेन वेदवचसा। कण्ववत्=ग्रन्थकारवत्। गिरः=स्वकीया वाणीः। शुम्भामि=पवित्रीकरोमि। यथा ग्रन्थरचयिता ईश्वरस्तोत्ररचनया स्वीयां वाणीं पुनाति तथाऽहमपि वेदाध्ययनेन स्वगिरं पवित्रीकरोमीत्यर्थः। येन=व्यापारेण। इन्द्रः=भगवान्। शुष्ममित्=प्रसन्नतामेव। दधे=दधाति ॥११॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अहम्) अहमुपासकः (प्रत्नेन, मन्मना) नित्येन ज्ञानेन (कण्ववत्) विद्वद्वत् (गिरः) वाणीः (शुम्भामि) अलङ्करोमि (येन) येन ज्ञानेन (इन्द्रः) परमात्मा (शुष्मम्, इत्, दधे) मयि बलं दधाति ॥११॥