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पु॒रु॒त्रा चि॒द्धि वां॑ नरा वि॒ह्वय॑न्ते मनी॒षिण॑: । वा॒घद्भि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

purutrā cid dhi vāṁ narā vihvayante manīṣiṇaḥ | vāghadbhir aśvinā gatam ||

Pad Path

पु॒रु॒ऽत्रा । चि॒त् । हि । वा॒म् । न॒रा॒ । वि॒ऽह्वय॑न्ते । म॒नी॒षिणः॑ । वा॒घत्ऽभिः॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । आ । ग॒त॒म् ॥ ८.५.१६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:5» Mantra:16 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:16


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SHIV SHANKAR SHARMA

उपयोगी और उद्योगी राजा प्रजाओं का प्रिय होता है, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (नरा) हे सर्वनेता (अश्विना) हे अश्वादि बलयुक्त राजन् और सभाध्यक्ष ! (मनीषिणः) मनीषी अर्थात् जितेन्द्रिय बुद्धिमान् मनस्वी आदि पुरुष (वाम्) आप दोनों को (पुरुत्रा+चित्+हि) बहुत प्रदेशों में (विह्वयन्ते) विविध प्रकार से या विशेषरूप से बुलाते हैं, अतः आप (वाघद्भिः) अच्छे-२ विद्वानों के साथ सब लोगों के यज्ञों में (आगतम्) आया करें ॥१६॥
Connotation: - विद्वान् और ऋत्विक् का नाम वाघत् है। राजवर्ग जहाँ जाएँ, वहाँ उनके साथ परम बुद्धिमान् जन और धार्मिक पुरोहित अवश्य रहें, ताकि सदसद्विवेक के साथ प्रजाओं के सब विषय निर्णीत होवें ॥१६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (नरा) हे नेताओ ! यद्यपि (वाम्) आपको (मनीषिणः) विद्वान् लोग (पुरुत्रा, चित्, हि) अनेक स्थानों में (विह्वयन्ते) आह्वान करते हैं तथापि (अश्विना) हे व्यापक ! आप (वाघद्भिः) शीघ्रगामी वाहनों द्वारा (आगतं) आवें ॥१६॥
Connotation: - हे ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप अनेक स्थानों में निमन्त्रित होने पर भी कृपा करके शीघ्रगामी यान द्वारा हमारे यज्ञ को सुशोभित करें ॥१६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

उपयोग्युद्योगी च राजा प्रजाप्रियो भवति।

Word-Meaning: - हे नरा=नरौ=सर्वेषां मनुष्याणां नेतारौ। हे अश्विना=हे अश्विनौ=अश्वादिबलयुक्तौ=राजसभाध्यक्षौ। मनीषिणः= मनसो चित्तस्येषिण ईशितारो जितेन्द्रिया बुद्धिमन्तो मनस्विनः पुरुषाः। वाम्=युवाम्। पुरुत्रा चिद्धि=बहुषु प्रदेशेषु। विह्वयन्ते=विविधमाह्वयन्ति। तस्मात् कारणात्। वाघद्भिः=मेधाविभिः सह। आगतमागच्छतं सर्वत्र ॥१६॥
Connotation: -
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (नरा) हे नेतारौ ! (वाम्) युवां (मनीषिणः) विद्वांसः (पुरुत्रा, चित्, हि) बहुषु स्थलेषु (विह्वयन्ते) आह्वयन्ति तथापि (अश्विना) हे व्यापकौ ! (वाघद्भिः) शीघ्रगामिवाहनैः (आगतं) अस्मान्नेव आगच्छतम् ॥१६॥