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आ नो॒ गोम॑न्तमश्विना सु॒वीरं॑ सु॒रथं॑ र॒यिम् । वो॒ळ्हमश्वा॑वती॒रिष॑: ॥

English Transliteration

ā no gomantam aśvinā suvīraṁ surathaṁ rayim | voḻham aśvāvatīr iṣaḥ ||

Pad Path

आ । नः॒ । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्वि॒ना॒ । सु॒ऽवीर॑म् । सु॒ऽरथ॑म् । र॒यिम् । वो॒ळ्हम् । अश्व॑ऽवतीः । इषः॑ ॥ ८.५.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:5» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

फिर प्रार्थना कही जाती है।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे स्वगुणों से सबके हृदय में निवासी राजन् तथा सभाध्यक्ष ! आप दोनों देश-देश में नाना कार्यों की स्थापना करके (नः) हम लोगों के लिये (गोमन्तम्) विविध गवादि पशुयुक्त (सुवीरम्) शोभन वीर संयुक्त (सुरथम्) सुरथ समेत (रयिम्) धन (आ+वोढम्) लाइये। और (अश्वावतीः) शोभनाश्वयुक्त (इषः) कमनीय अन्न एकत्रित कीजिये ॥१०॥
Connotation: - विविध देशों की कलाओं, वाणिज्य विद्याओं और उनके साधन यन्त्रादिकों को स्वयं जान और प्रजाओं को जनवाकर देश को सब मिलकर समृद्ध करें ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापक ! (नः) आप हमारे लिये (गोमन्तम्) विद्यायुक्त (सुवीरम्) शोभनवीरयुक्त (सुरथम्) शोभनवाहनयुक्त (रयिम्) धन को तथा (अश्वावतीः) व्यापकशक्तिसहित (इषः) इष्ट कामनाओं को (आवोढम्) प्राप्त कराएँ ॥१०॥
Connotation: - हे कर्मयोगिन् तथा ज्ञानयोगिन् ! आप हमको विद्यादान द्वारा तृप्त करें, जिससे हम परमात्मपरायण होकर वेदवाणी का विस्तार करें। हमको दुष्ट दस्यु तथा म्लेच्छ जनों के दमनार्थ शूरवीर पुरुष प्रदान करें, जो हमारी रक्षा में तत्पर रहें और हमें उत्तम वाहन तथा अन्नादि धन प्राप्त कराएँ, जिससे हम अपनी इष्टकामनाओं को पूर्ण कर सकें ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः प्रार्थना विधीयते।

Word-Meaning: - हे अश्विना=अश्विनौ। युवाम्। सर्वत्र नानाकार्यस्थापनैः। नोऽस्मभ्यम्। गोमन्तम्=प्रशस्तगवादिपशुसहितम्। सुवीरम्=शोभनैर्वीरैरुपेतं विविधमीरयन्ति शत्रूनिति वीराः शूरास्तैर्युक्तं वा। सुरथम्=शोभनरथसमेतम्। रयिम्=धनम्। आवोढम्=आवहतमाहरतम्। तथा च। अश्वावतीरश्वोपेताः। इषः=इष्यमाणानि। काम्यानि=अन्नानि च। आहरतम् ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे अश्विनौ ! (नः) अस्मभ्यम् (गोमन्तम्) विद्यायुक्तम् (सुवीरम्) शोभनवीरवत् (सुरथम्) शोभनवाहनवत् (रयिम्) धनम् (अश्वावतीः) व्यापकशक्तिसहिताम् (इषः) इष्टिं च (आवोढम्) प्रापयतम् ॥१०॥