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इ॒षि॒रेण॑ ते॒ मन॑सा सु॒तस्य॑ भक्षी॒महि॒ पित्र्य॑स्येव रा॒यः । सोम॑ राज॒न्प्र ण॒ आयूं॑षि तारी॒रहा॑नीव॒ सूर्यो॑ वास॒राणि॑ ॥

English Transliteration

iṣireṇa te manasā sutasya bhakṣīmahi pitryasyeva rāyaḥ | soma rājan pra ṇa āyūṁṣi tārīr ahānīva sūryo vāsarāṇi ||

Pad Path

इ॒षि॒रेण॑ । ते॒ । मन॑सा । सु॒तस्य॑ । भ॒क्षी॒महि॑ । पित्र्य॑स्यऽइव । रा॒यः । सोम॑ । राज॑न् । प्र । नः॒ । आयूं॑षि । ता॒रीः॒ । अहा॑निऽइव । सूर्यः॑ । वा॒स॒राणि॑ ॥ ८.४८.७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:48» Mantra:7 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:7


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (इन्दो) हे आह्लादप्रद (सोम) हे सर्वश्रेष्ठ रस तथा शरीरपोषक अन्न ! तू (पीतः) हम जीवों से पीत और भुक्त होकर (नः+हृदे) हमारे हृदय के लिये (शम्+आ+भव) कल्याणकारी हो। यहाँ दो दृष्टान्त देते हैं (पिता+इव+सूनवे) जैसे पुत्र के लिये पिता सुखकारी होता है, पुनः (सखा+इव) जैसे मित्र मित्रों को (सख्ये) मित्रता में रखकर अर्थात् जैसे मित्र मित्रों को अहित दुर्व्यसन आदि दुष्कर्मों से छुड़ाकर हितकार्य्य में लगा (सुशेवः) सुखकारी होता है, तद्वत्। (उरुशंस+सोम) हे बहुप्रशंसनीय सोम ! (धीरः) तू धीर होकर (जीवसे) जीवन के लिये (नः+आयुः) हमारी आयु को (प्र+तारीः) बढ़ा दे ॥४॥
Connotation: - ऐसा अन्न और रस खाओ और पीओ, जिससे शरीर और आत्मा को लाभ पहुँचे और आयु बढ़े ॥४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे इन्दो=आनन्दकर। हे सोम=सर्वश्रेष्ठरस। हे शरीरपोषक अन्न ! त्वं पीतः सन्। नोऽस्माकम्। हृदे=हृदयाय। शं=सुखकारी। आभव। अत्र द्वौ दृष्टान्तौ। पितेव सूनवे। यथा पिता पुत्राय सुखकारी भवति। पुनः। सखेव। यथा सखा सखीन्। सख्ये नियोज्य। सुशेवः=सुखकरो भवति। हे उरुशंस=सर्वप्रशंसनीय ! त्वं धीरो भूत्वा। जीवसे=जीवनाय। नोऽस्माकम्। आयुः। प्रतारीः=प्रवर्धय ॥४॥