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अजै॑ष्मा॒द्यास॑नाम॒ चाभू॒माना॑गसो व॒यम् । उषो॒ यस्मा॑द्दु॒ष्ष्वप्न्या॒दभै॒ष्माप॒ तदु॑च्छत्वने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

English Transliteration

ajaiṣmādyāsanāma cābhūmānāgaso vayam | uṣo yasmād duṣṣvapnyād abhaiṣmāpa tad ucchatv anehaso va ūtayaḥ suūtayo va ūtayaḥ ||

Pad Path

अजै॑ष्म । अ॒द्य । अस॑नाम । च॒ । अभू॑म । अना॑गसः । व॒यम् । उषः॑ । यस्मा॑त् । दुः॒ऽस्वप्न्या॑त् । अभै॑ष्म । अप॑ । तत् । उ॒च्छ॒तु॒ । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥ ८.४७.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:47» Mantra:18 | Ashtak:6» Adhyay:4» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (दिवः+दुहितः) हे प्रकाशकन्ये बुद्धि देवि ! (वा) अथवा (निष्कम्) आभरण (कृणवते) धारण करनेवाले (वा) अथवा (स्रजम्) माला पहिननेवाले अर्थात् आनन्द के समय में भी मुझको जो दुःस्वप्न प्राप्त होता है, (तत्+सर्वम्+दुःस्वप्न्यम्) उस सब दुःस्वप्न को (आप्त्ये) व्याप्त (त्रिते) तीनों लोकों में (परि+दद्मसि) हम रखते हैं अर्थात् वह दुःस्वप्न इस विस्तृत संसार में कहीं जाए ॥१५॥
Connotation: - बुद्धि से विचार करना चाहिये कि स्वप्न क्या वस्तु है। जब शिर में गरमी पहुँचती है, तब निद्रा अच्छी तरह नहीं होती। उस समय लोग नाना स्वप्न देखते हैं, इसलिये शिर को सदा शीतल रक्खे। पेट को सदा शुद्ध रक्खे। बल वीर्य्य से शरीर को नीरोग बनावे। व्यसन में कभी न फँसे। कोई भयंकर काम न करे। इस प्रकार के उपायों से स्वप्न कम होंगे ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - हे दिवो दुहितः ! प्रकाशस्य कन्ये बुद्धे ! यद्वा। हे उषः। वा=अथवा। निष्कमाभरणम्। कृणवते=कृतवते। वा=अथवा। स्रजं माल्यं कृतवते। मह्यं यद् दुःस्वप्न्यं जायते। तत्सर्वम्। आप्त्ये त्रिते। परिदद्मसि=स्थापयामः ॥१५॥