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आ त्वा॑ र॒म्भं न जिव्र॑यो रर॒भ्मा श॑वसस्पते । उ॒श्मसि॑ त्वा स॒धस्थ॒ आ ॥

English Transliteration

ā tvā rambhaṁ na jivrayo rarabhmā śavasas pate | uśmasi tvā sadhastha ā ||

Pad Path

आ । त्वा॒ । र॒म्भम् । न । जिव्र॑यः । र॒र॒भ्म । श॒व॒सः॒ । प॒ते॒ । उ॒श्मसि॑ । त्वा॒ । स॒धऽस्थे॑ । आ ॥ ८.४५.२०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:45» Mantra:20 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:45» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:20


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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - (उत) और (वयम्) हम उपासक (दूरात्) दूर देश से (इह) अपने-२ गृह और शुभ कर्म में (त्वाम्) तुझको (हवामहे) बुलाते हैं, जो तू (अबधिरम्) हमारे अभीष्ट सुनने के लिये सदा सावधान है और इसी कारण (श्रुत्कर्णम्) श्रवण पर (सन्तम्) सर्वत्र विद्यमान है, उस तुझको (ऊतये) अपनी रक्षा के लिये बुलाते हैं ॥१७॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! तुम्हें निश्चय हो कि वह बधिर नहीं है, वह हमारा वचन सुनता है। वह प्रार्थना पर ध्यान देता है और आवश्यकता को पूर्ण करता है, अतः उसी की स्तुति प्रार्थना करो ॥१७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

Word-Meaning: - उत=अपि च वयमुपासकाः। अबधिरम्=अस्माकमभीष्टं श्रोतुं सदा अवहितम्। अतएव श्रुत्कर्णम्=प्रार्थनाश्रवणम्। पुनः। सन्तम्=सर्वत्र विद्यमानम्। ऊतये=रक्षायै। त्वा=त्वामेव। इह=स्वस्वगृहे। दूरात्। हवामहे ॥१७॥