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शनै॑श्चि॒द्यन्तो॑ अद्रि॒वोऽश्वा॑वन्तः शत॒ग्विन॑: । वि॒वक्ष॑णा अने॒हस॑: ॥

English Transliteration

śanaiś cid yanto adrivo śvāvantaḥ śatagvinaḥ | vivakṣaṇā anehasaḥ ||

Pad Path

शनैः॑ । चि॒त् । यन्तः॑ । अ॒द्रि॒ऽवः॒ । अश्व॑ऽवन्तः । श॒त॒ऽग्विनः॑ । वि॒वक्ष॑णाः । अ॒ने॒हसः॑ ॥ ८.४५.११

Rigveda » Mandal:8» Sukta:45» Mantra:11 | Ashtak:6» Adhyay:3» Varga:44» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:6» Mantra:11


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SHIV SHANKAR SHARMA

उपासक अपने आत्मा को समझाता है।

Word-Meaning: - (वज्रिन्) हे स्वशीलरक्षा के लिये महादण्डधारिन् ! आप मेरी (विश्वाः) समस्त (अभियुजः) उपद्रवकारिणी प्रजाओं को (सु) अच्छे प्रकार (वि+वृह) निर्मूल कर नष्ट कर देवें, जिससे वे (यथा) जैसे (विष्वग्) छिन्न-भिन्न होकर नाना मार्गावलम्बी हों जाएँ और आप हे अन्तरात्मन् ! (नः) हमारे (सुश्रवस्तमः) शोभन यशोधारी हूजिये ॥८॥
Connotation: - प्रतिदिन हमारे अन्तःकरण में नाना दुष्ट वासनाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। ये ही हमारे महाशत्रु हैं, उनको ज्ञानी सुशील आत्मा अपने निकट नहीं आने देता। वही आत्मा संसार में यशोधारी होता है, अतः हे मनुष्यों ! अपने आत्मा में बुरी वासनाएँ उत्पन्न होने मत दो ॥८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

उपासक आत्मानं बोधयति।

Word-Meaning: - हे वज्रिन् ! स्वशीलरक्षायै। महादण्डधारिन् ! मम। विश्वाः=सर्वाः। अभियुजः=अभियोक्त्रीः प्रजाः। यथा विष्वग्=छिन्नभिन्ना भवेयुः। तथा सु=सुष्ठु। वि वृह=विनाशय। तथा नोऽस्माकम्। सुश्रवस्तमः= सुयशोधारितमो भव ॥८॥