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स॒व्यामनु॑ स्फि॒ग्यं॑ वावसे॒ वृषा॒ न दा॒नो अ॑स्य रोषति । मध्वा॒ सम्पृ॑क्ताः सार॒घेण॑ धे॒नव॒स्तूय॒मेहि॒ द्रवा॒ पिब॑ ॥

English Transliteration

savyām anu sphigyaṁ vāvase vṛṣā na dāno asya roṣati | madhvā sampṛktāḥ sāragheṇa dhenavas tūyam ehi dravā piba ||

Pad Path

स॒व्याम् । अनु॑ । स्फि॒ग्य॑म् । व॒व॒से॒ । वृषा॑ । न । दा॒नः । अ॒स्य॒ । रो॒ष॒ति॒ । मध्वा॑ । सम्ऽपृ॑क्ताः । सा॒र॒घेण॑ । धे॒नवः॑ । तूय॑म् । आ । इ॒हि॒ । द्रव॑ । पिब॑ ॥ ८.४.८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:4» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:31» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:8


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SHIV SHANKAR SHARMA

इससे ईश्वर का सर्वव्यापकत्व दिखलाया जाता है।

Word-Meaning: - (वृषा) जीवों की समस्त कामनाओं की वर्षा करनेवाला महान् वह इन्द्र (सव्याम्) बाएँ (स्फिग्यम्+अनु) कटिप्रदेश से अर्थात् शरीर के केवल एकदेशमात्र से (वावसे) सम्पूर्ण जगत् को आच्छादित कर रहा है। जैसे “पादोऽस्य सर्वा भूतानि” इत्यादि ऋचा से पद शब्द द्वारा इसकी व्यापकता बतलाई गई है, इसी प्रकार यहाँ वामकटिप्रदेश शब्द द्वारा उसकी व्यापकता कही गई है, ऐसी ऋचा और भी है। ऋ० ३।३२।११। देखो। यहाँ आक्षेप होता है कि यदि वह सर्वत्र व्याप्त है, तब इस संसार में विकार प्राप्त होने पर वह भी विकृत हो जाता होगा, इस पर कहते हैं−(दानः) इस संसार का अवखण्डन=विकार (अस्य) इस परमात्मा को (न+रोषति) क्रुद्ध नहीं करता अर्थात् संसार के विकार से यह विकृत नहीं होता। यद्वा (दानः) यजमानों से समर्पित वस्तु उसको क्रुद्ध नहीं करती। हे महेश ! संसारस्थ सकल पदार्थ (सारघेण) मधुमक्षिकासम्बन्धी (मध्वा) मधु से (संवृक्ताः) मिश्रित हैं तथा (धेनवः) जैसे धेनु दूध देकर जगत् को आनन्दित करती है, वैसे तेरे सब ही पदार्थ हैं। धेनु प्रत्यक्षरूप से, अन्यान्य पदार्थ प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष साक्षात् वा परम्परारूप से जगत् को सब तरह आनन्द दे रहे हैं, इस कारण हे परमात्मन् ! इन पदार्थों पर अनुग्रह करने के लिये (तूयम्+एहि) शीघ्र आ (द्रव) इन पर द्रवीभूत हो (पिब) उत्कट इच्छा से इनको देख या हमारी रक्षा कर ॥८॥
Connotation: - वह ईश आनन्दस्वरूप और सर्वगत है, प्राकृत विकार उसको विकृत नहीं करते। अतः हे मनुष्यो ! उसी की उपासना करो ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वृषा) कामनाओं की वर्षा करनेवाले आप (सव्याम्, स्फिग्यम्, अनु) बाएँ अङ्ग से ही (वावसे) सबको अभिभूत किये हैं (अस्य) इस कर्मयोगी के (दानः) भाग का दाता सेवक (न, रोषति) कभी इससे रुष्ट नहीं होता (सारघेण) सरघा=मधुमक्षिका से किये हुए (मध्वा) मधु से (संपृक्ताः) संमिश्रित (धेनवः) गव्यपदार्थ आपके लिये विद्यमान हैं। आप (तूयम्) शीघ्र (आगहि) आइये (द्रव) द्रुतगति से आइये (पिब) सिद्धरस को पीजिये ॥८॥
Connotation: - सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाले कर्मयोगिन् ! आप वाम अङ्ग से ही सब शत्रुओं को वशीभूत करनेवाले हैं। जो प्रसन्नतापूर्वक आपका भाग देता है, उसका आप सदा ही कल्याण करते और अनाज्ञाकारी का दमन करते हैं। हे भगवन् ! यह शहद और दुग्धादि पदार्थों से मिश्रित उत्तमोत्तम खाद्य पदार्थ आपके लिये सिद्ध किये हुए रखे हैं, आप शीघ्र आकर इनका सेवन कीजिये ॥८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईशस्य सर्वव्यापकत्वमनया प्रदर्श्यते।

Word-Meaning: - वृषा=सर्वान् कामान् वर्षतीति वृषा संसारस्यानन्दप्रदाता महान्। स खलु सर्वेश्वरः। सव्याम्=दक्षिणेतराम्। स्फिग्यम्=कटिप्रदेशम् अनु। तृतीयार्थेऽनोः कर्मप्रवचनीयत्वम्। सव्यया स्फिग्या शरीरैकदेशेनैव। वावसे=वस्ते=सर्वमिदं जगदाच्छादयति। स्वयं कृत्स्नं जगदतीत्य वर्तत इत्यर्थः। निगमान्तरञ्च भवति। यदन्यया स्फिग्याक्षामवस्थाः ॥ ऋ० ३।३२।११ इति ॥ यदि स जगति व्यापकोऽस्ति तर्हि विकृते जगति सोऽपि विकारं प्राप्नुयादित्याक्षेपे ब्रवीति। दानः=दानम्। लिङ्गव्यत्ययमत्र। दो अवखण्डने। संसारस्य अवखण्डनं विकारः। अस्य=सर्वत्र विद्यमानस्य इन्द्रस्य=इममिन्द्रम्। अत्र कर्मणि षष्ठी। न रोषति=न रोषयति कोपयति। हे महेश ! इमे संसारस्थाः पदार्थाः। तव कृपया। सारघेण=सरघा मधुमक्षिका तत्सम्बन्धिना। मध्वा=मधुना मधुवत् स्वादुद्रव्येण। संपृक्ताः=मिश्रिताः सन्ति। तथा। धेनवः=अत्र लुप्तोपमा। दुग्धदात्र्यो धेनव इव आनन्दप्रदाः सन्ति। यत एवमतः। तूयम्=शीघ्रम्। अनुग्रहार्थम्। एहि=आगच्छ। द्रव=एषां पदार्थानामुपरि कृपां कुरु। तथा। पिब=उत्कटेच्छया अस्मान् पश्य पाहि वा। यद्वा। दानः=दानम्=यजमानैः समर्प्यमाणं वस्तु। न तं रोषयतीत्यर्थः ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वृषा) कामान् वर्षुको भवान् (सव्याम्, स्फिग्यम्, अनु) वामेन शरीरावयवेन (वावसे) सर्वानाच्छादयति (अस्य) अस्य कर्मयोगिणः (दानः) सेवकः (न, रोषति) न कदापि अस्मै क्रुध्यति (सारघेण, मध्वा) सरघासम्पादितेन मधुना (संपृक्ताः) संमिश्रिताः (धेनवः) गव्यपदार्थाः सन्ति, अतः (तूयम्) क्षिप्रम् (आगहि) आयाहि (द्रव) द्रुतमागच्छ (पिब) रसं पिब ॥८॥