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वृ॒क्षाश्चि॑न्मे अभिपि॒त्वे अ॑रारणुः । गां भ॑जन्त मे॒हनाश्वं॑ भजन्त मे॒हना॑ ॥

English Transliteration

vṛkṣāś cin me abhipitve arāraṇuḥ | gām bhajanta mehanāśvam bhajanta mehanā ||

Pad Path

वृ॒क्षाः । चि॒त् । मे॒ । अ॒भि॒ऽपि॒त्वे । अ॒र॒र॒णुः॒ । गाम् । भ॒ज॒न्त॒ । मे॒हना॑ । अश्व॑म् । भ॒ज॒न्त॒ । मे॒हना॑ ॥ ८.४.२१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:4» Mantra:21 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:33» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:21


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SHIV SHANKAR SHARMA

मानव शरीर का महत्त्व दिखलाया जाता है।

Word-Meaning: - मानव की शक्ति देखकर मानो अन्य सब जीव स्पर्धा करते हैं। यथा−(मे) मुझ मनुष्य के इन्द्रियों की (अभिपित्वे) प्राप्ति पर (वृक्षाः+चित्) वृक्ष भी (अरारणुः) चिल्ला उठते हैं कि ये मनुष्य (मेहना) प्रशंसनीय (गाम्) नयनादि इन्द्रियों को (भजन्त) पाए हुए हैं तथा (मेहना) प्रशंसनीय (अश्वम्) मनोरूप अश्व को पाए हुए हैं। यद्वा “मेहना” इसमें (मे+इह+न) तीन पद हैं। तब ऐसा अर्थ होगा। वृक्षादिक कहते हैं कि (इह) इस मेरे वृक्ष शरीर में (मे) मुझको (न) जो धन नहीं है, वह (गाम्) इन्द्रियरूप धन ये मनुष्य पाये हुए हैं, इसी प्रकार मनोरूप अश्व पाये हुए हैं ॥२१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! परमात्मा मनुष्यजाति को जो दान देता है, उसको कोई वर्णन नहीं कर सकता, मनुष्य का दान देखकर जड़ वृक्ष भी स्पर्धा करते हैं। ऐसा दान पाकर भी यदि तुम महान् कार्य्य नहीं साधते हो, तब तुम्हारी महती विनष्टि है ॥२१•॥
Footnote: यह अष्टम मण्डल का चतुर्थ सूक्त, तैंतीसवाँ वर्ग और सप्तम अनुवाक समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मे, अभिपित्वे) मुझको द्रव्य प्राप्त होने पर (गां, भजन्त, मेहना) श्रेष्ठ गोधन को पाया (अश्वं, भजन्त, मेहना) श्रेष्ठ अश्वों को पाया, ऐसा (वृक्षाः, चित्) वृक्ष भी (अरारणुः) शब्द करने लगे ॥२१॥
Connotation: - ऋषि की ओर से कथन है कि मुझको गोधनरूप धन प्राप्त होने पर बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ और मूर्ख से लेकर पण्डितपर्य्यन्त सब जन इस दान की प्रशंसा करने लगे, मन्त्र में “वृक्ष” शब्द से तात्पर्य्य जड़=मूर्ख का है, वृक्ष का नहीं, क्योंकि वृक्ष में शब्द करने की शक्ति नहीं होती ॥२१॥ यह चौथा सूक्त और तेतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

मानवशरीरमहिमा प्रदर्श्यते।

Word-Meaning: - मानवशक्तिं दृष्ट्वेतरे सर्वे पदार्थाः स्पर्धन्त इत्यनया शिक्षते। यथा−मे=मम मनुष्यस्येन्द्रियादीनाम्। अभिपित्वे=प्राप्तौ। इमे। वृक्षाः+चित्=वृक्षा अपि। वक्ष्यमाणप्रकारेण। अरारणुः=अशब्दयन्=शब्दायन्ते। कथमिति तदाह−इमे मनुष्याः। मेहना=मेहनीयां प्रशस्याम्। गाम्=इन्द्रियम्। भजन्त=असेवन्त=प्राप्तवन्तः। तथा। मेहना=प्रशस्यम्। अश्वं मनोरूपम्। भजन्त। यद्वा। मेहनेति− मे+इह+नेति−पदत्रयात्मकं पदम्। मे=मम। इह देहे। यद्धनमिन्द्रियादिस्वरूपम्। नास्ति। तद् गवादिकं धनम्। इमे मनुष्या लभन्त इति वृक्षादयः सर्वे कथयन्तीति मन्ये। आलङ्कारिकमिदं वर्णनम् ॥२१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मे, अभिपित्वे) मया द्रव्ये प्राप्ते (गाम्, भजन्त, मेहना) मंहनीयं गोधनमलभन्त (अश्वम्, भजन्त, मेहना) मंहनीयमश्वधनमलभन्त इति (वृक्षाः, चित्) वृक्षा अपि (अरारणुः) अशब्दायन्त ॥२१॥ इति चतुर्थं सूक्तं त्रयस्त्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥