Go To Mantra

ऋश्यो॒ न तृष्य॑न्नव॒पान॒मा ग॑हि॒ पिबा॒ सोमं॒ वशाँ॒ अनु॑ । नि॒मेघ॑मानो मघवन्दि॒वेदि॑व॒ ओजि॑ष्ठं दधिषे॒ सह॑: ॥

English Transliteration

ṛśyo na tṛṣyann avapānam ā gahi pibā somaṁ vaśām̐ anu | nimeghamāno maghavan dive-diva ojiṣṭhaṁ dadhiṣe sahaḥ ||

Pad Path

ऋश्यः॑ । न । तृष्य॑न् । अ॒व॒ऽपान॑म् । आ । ग॒हि॒ । पिब॑ । सोम॑म् । वशा॑न् । अनु॑ । नि॒ऽमेघ॑मानः । म॒घ॒ऽव॒न् । दि॒वेऽदि॑वे । ओजि॑ष्ठम् । द॒धि॒षे॒ । सहः॑ ॥ ८.४.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:4» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:31» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:10


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

यह प्रार्थना अनुग्रहार्थ है।

Word-Meaning: - हे इन्द्रवाच्य परमात्मन् ! (न) जैसे (तृष्यन्) तृषार्त (ऋश्यः) मृग (अवपानम्) जलस्थान की ओर दौड़ता है। तद्वत् तू हम लोगों की ओर (आगहि) आ और (वशान्+अनु) इच्छानुसार (सोमम्) अखिल पदार्थ को (पिब) उत्कट इच्छा से देख, उन पर कृपा कर। (मघवन्) हे समस्तपूज्य धनसम्पन्न इन्द्र ! (दिवे+दिवे) दिन-दिन तू (निमेघमानः) सर्वत्र आनन्द की वर्षा करता हुआ सब पदार्थों में (ओजिष्ठम्) अतिशय ओजस्वी और प्रभावशाली (सहः) बल को (दधिषे) स्थापित करता है ॥१०॥
Connotation: - पूर्वार्ध से अतिशय प्रेम दिखलाते हैं। जैसे पिपासित मृग जलाशय की ओर दौड़ता है, हे ईश ! वैसे तू भी हमारे क्लेशों को देखकर मत विलम्ब कर। तेरी ही कृपा से सब पदार्थ प्रतिदिन अपनी-२ सत्ता पाते हैं और बल धारण करते हैं, अतः मेरी ओर भी देख ॥१०॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (तृष्यन्, ऋश्यः) प्यासा ऋश्य=मृगविशेष (अवपानम्, न) जैसे जलस्थान के समीप जाता है, उसी प्रकार आप मेरे यज्ञ में (आगहि) आवें (वशान्, अनु) अपनी इच्छानुकूल (सोमम्, पिब) सोमरस को पान करें (मघवन्) हे ऐश्वर्य्यशालिन् ! (दिवेदिवे) प्रतिदिन (निमेघमानः) प्रजाओं में आनन्द की वर्षा करते हुए (ओजिष्ठम्) अत्यन्त ओजस् से युक्त (सहः) बल को (दधिषे) आप धारण करते हैं ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में याज्ञिक पुरुषों की ओर से कथन है कि हे कर्मयोगिन् ! जैसे पिपासातुर मृग जलाशय की ओर अति शीघ्रता से जाता है, इसी प्रकार शीघ्र ही आप हमारे यज्ञस्थान को प्राप्त होकर सोमरस पान करें और अपने सदुपदेश से आनन्द वर्षावें। हे महाबलशालिन् कर्मयोगिन् ! आप हमें भी बलवान् कीजिये ताकि अपने कार्यों को विधिवत् करते हुए सदा शत्रुओं का दमन करते रहें ॥१०॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

अनुग्रहार्था प्रार्थना।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वम्। तृष्यन्=पिपासया व्याकुलितः सन्। ऋश्यो न=ऋश्यमृग इव यथा मृगः। अवपानम्=अवपिबन्ति यत्र तदवपानम्=पानभोजनस्थानं याति। तद्वत्। अस्माकमनुग्रहार्थम्। आगहि= आगच्छ=उत्कटेच्छयाऽस्माननुगृहाण। तथा। वशान्+अनु=अनुकामं स्वेच्छानुसारम्। त्वम्। सोमम्=जगत्पदार्थमात्रम्। पिब=उत्कटेच्छया पश्येत्यर्थः। हे मघवन् ! दिवे दिवे=दिने दिने। त्वम्। निमेघमानः=निमेहमानः=नितरां संसारं प्रति कामान् सिञ्चन्। मिह सेचने। ओजिष्ठम्=ओजस्वितमम्। सहः=बलम्। दधिषे=स्थापयसि। सर्वेषु पदार्थेषु वृष्टिप्रदानेन महद्बलं स्थापयसि ॥१०॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (तृष्यन्, ऋश्यः) पिपासन् ऋश्यो मृगविशेषः (अवपानम्, न) पानस्थानमिव (आगहि) आगच्छ (वशान्, अनु) स्ववशमनुसृत्य (सोमं, पिब) सोमरसं पिब (मघवन्) ऐश्वर्य्यवन् ! (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (निमेघमानः) प्रजासु आनन्दं वर्षयमाणः (ओजिष्ठम्) ओजोयुक्तम् (सहः) बलम् (दधिषे) दधासि ॥१०॥