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पु॒रो॒ळाशं॒ यो अ॑स्मै॒ सोमं॒ रर॑त आ॒शिर॑म् । पादित्तं श॒क्रो अंह॑सः ॥

English Transliteration

puroḻāśaṁ yo asmai somaṁ rarata āśiram | pād it taṁ śakro aṁhasaḥ ||

Pad Path

पु॒रो॒ळाश॑म् । यः । अ॒स्मै॒ । सोम॑म् । रर॑ते । आ॒ऽशिर॑म् । पात् । इत् । तम् । श॒क्रः । अंह॑सः ॥ ८.३१.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:31» Mantra:2 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:38» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:5» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

फिर वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - ईश्वर को ही लक्ष्य करके निखिल शुभकर्म कर्तव्य हैं, यह इससे शिक्षा दी जाती है। यथा−(यः) जो उपासक (अस्मै) सर्वत्र विद्यमान इस परमात्मा को प्रथम समर्पित कर (पुरोडाशम्) दरिद्रों के आगे अन्न (ररते) देता रहता है और (सोमम्) परम पवित्र अन्न को और (आशिरम्) विविध द्रव्यों से मिश्रित अन्न को जो देता रहता है, (तम्) उसको (अंहसः) पाप से (शक्रः) सर्वशक्तिमान् ईश्वर (पात्+इत्) पालता ही है ॥२॥
Connotation: - संसार में दरिद्रता और अज्ञान अधिक हैं, इस कारण ज्ञानी पुरुष ज्ञान और धनी जन विविध प्रकार के अन्न और द्रव्य इच्छुक जनों को सदा दिया करें। ईश्वर दाताओं को सर्व दुःखों से बचाया करता है, क्योंकि वह सर्वशक्तिमान् है ॥२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्तते।

Word-Meaning: - ईश्वरमेव लक्षीकृत्य शुभानि कर्माणि विद्यातव्यानीति अनया शिक्षते। यथा यः खलु उपासकः अस्मै सर्वत्र विद्यमानाय महेश्वराय। समर्प्य पुरोडाशं पुरोऽन्नं दरिद्रेभ्यो दातव्यमन्नम्। श्रद्धया पुरोऽग्रे यद्दाश्यते दीयते। तं पुरोडाशम्। ररते ददाति। यः सोमं पवित्रतमं वस्तु। ररते। यः आशिरं विविधद्रव्याणि मिश्रयित्वा परिपक्वमन्नम्। ररते। तम् उपासकम्। अंहसः पापात्। शक्रः सर्वशक्तिमान् ईशः। पात्+इत्। पात्येव ॥२॥