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अ॒स्येदिन्द्रो॑ वावृधे॒ वृष्ण्यं॒ शवो॒ मदे॑ सु॒तस्य॒ विष्ण॑वि । अ॒द्या तम॑स्य महि॒मान॑मा॒यवोऽनु॑ ष्टुवन्ति पू॒र्वथा॑ ॥

English Transliteration

asyed indro vāvṛdhe vṛṣṇyaṁ śavo made sutasya viṣṇavi | adyā tam asya mahimānam āyavo nu ṣṭuvanti pūrvathā ||

Pad Path

अ॒स्य । इत् । इन्द्रः॑ । व॒वृ॒धे॒ । वृष्ण्य॑म् । शवः॑ । मदे॑ । सु॒तस्य॑ । विष्ण॑वि । अ॒द्य । तम् । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मान॑म् । आ॒यवः॑ । अनु॑ । स्तु॒व॒न्ति॒ । पू॒र्वऽथा॑ ॥ ८.३.८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:3» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:8


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SHIV SHANKAR SHARMA

आजकल के मनुष्य भी उसको गाते हैं, यह शिक्षा इससे देते हैं।

Word-Meaning: - जिस कारण (अस्य) इस (सुतस्य) समस्त उत्पादित पदार्थों को (विष्णवि) बहुत (मदे) आनन्द देने के लिये (इन्द्रः+इत्) भगवान् ही इनके (वृष्ण्यम्) रस तथा (शवः) बल को (वावृधे) बढ़ाता है इसलिये (अस्य) इस इन्द्र की (तम्+महिमानम्) उस महिमा को (अद्य) आज भी (पूर्वथा) पूर्व समय के समान ही (आयवः) विज्ञानी पुरुष (अनु) क्रमपूर्वक (स्तुवन्ति) गाते हैं ॥८॥
Connotation: - सब पदार्थ आनन्दमय होवें, इस हेतु इनमें रसों और बलों को सदा इन्द्र बढ़ाता रहता है। विद्वान् ईश्वर की ऐसी महिमा जानकर सर्वदा से गाते चले आते हैं ॥८॥
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ARYAMUNI

अब कर्मयोगी के आचरण का अनुष्ठान करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्रः) कर्मयोगी (अस्य, इत्) इस स्तोता के ही (वृष्ण्यं, शवः) वीर्य्य तथा बल को (सुतस्य) संस्कृत पदार्थसेवन से (विष्णवि, मदे) शरीरव्यापक आनन्द उत्पन्न होने पर (ववृधे) बढ़ाता है (आयवः) मनुष्य (अस्य) इस कर्मयोगी के (तं, महिमानं) उस महत्त्व को (अद्य) अब भी (पूर्वथा) पहले की तरह (अनुष्टुवन्ति) यथावत् स्तवन करते हैं ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि स्तोता तथा अधिकारी जिज्ञासुजनों के बल को उत्तमोत्तम पदार्थों द्वारा कर्मयोगी बढ़ाता है, क्योंकि बलसम्पन्न पुरुष ही अपने अभीष्ट को पूर्ण कर सकता है और मनुष्य पूर्व की न्याईं अर्थात् पूर्व कल्प के समान इस कर्मयोगी के धर्माचरण का अनुष्ठान करके अब भी ऐश्वर्य्यशाली हो सकते हैं, इसलिये कर्मयोगी का स्तवन करते हुए पुरुष अनुष्ठानार्ह हों ॥८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अद्यतना अपि तं गायन्तीत्यनया शिक्षते।

Word-Meaning: - य इन्द्रः। अस्य=सुप्रसिद्धस्य। सुतस्य=उत्पादितस्य समस्तस्य पदार्थस्य। विष्णवि=व्यापके। मदे=आनन्दहेतौ। इन्द्रः इत्=ईश एव। वृष्ण्यम्=वृषत्वं रसत्वम्। तथा। शवो बलञ्च। वावृधे=वर्धयति। तस्यास्य। तं महिमानम्। अद्य=अद्यापि। आयवः=ज्ञानिनो मनुष्याः। पूर्वथा=पूर्ववत्। अनुष्टुवन्ति=आनुपूर्व्येण स्तुवन्ति प्रशंसन्ति। पूर्वथा=पूर्वशब्दादिवार्थे प्रत्नपूर्वेत्यादिना थाल्प्रत्ययः ॥८॥
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ARYAMUNI

अथ जनाः कर्मसु कर्मयोगिनमनुसरन्तीति कथ्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्रः) कर्मयोगी (अस्य, इत्) अस्य स्तोतुरेव (वृष्ण्यं) वीर्यं (शवः) बलं च (ववृधे) वर्धयति (सुतस्य) संस्कृतरसस्य (विष्णवि, मदे) व्यापके आनन्दे सति (आयवः) मनुष्याः (अस्य) अस्येन्द्रस्य (तं, महिमानं) पूर्वोक्तमहिमानं (अद्य) सम्प्रत्यपि (पूर्वथा) पूर्वमिव (अनुष्टुवन्ति) आनुपूर्व्या स्तुवन्ति ॥८॥