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इ॒मा उ॑ त्वा पुरूवसो॒ गिरो॑ वर्धन्तु॒ या मम॑ । पा॒व॒कव॑र्णा॒: शुच॑यो विप॒श्चितो॒ऽभि स्तोमै॑रनूषत ॥

English Transliteration

imā u tvā purūvaso giro vardhantu yā mama | pāvakavarṇāḥ śucayo vipaścito bhi stomair anūṣata ||

Pad Path

इ॒माः । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो । गिरः॑ । व॒र्ध॒न्तु॒ । याः । मम॑ । पा॒व॒कऽव॑र्णाः । शुच॑यः । वि॒पः॒ऽचितः॑ । अ॒भि । स्तोमैः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥ ८.३.३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:3» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:3


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसी का यश गाना चाहिये, यह शिक्षा इससे देते हैं।

Word-Meaning: - हे (पुरुवसो) सर्वव्यापी ! सर्वधन ! सर्वनिवासी परमात्मन् ! (मम) मेरी (याः+इमाः) जो ये (गिरः) स्तुतिरूप वचन हैं, वे (त्वा+उ) तेरे उद्देश से (वर्धन्तु) बढ़ें और तेरे ही यश को सदा बढ़ावें। क्योंकि हे भगवन् ! ये (पावकवर्णाः) अग्नि के समान देदीप्यमान अतएव (शुचयः) शुद्ध (विपश्चितः) विद्वान् भी (स्तोमैः) निज-२ स्तोत्रों से तेरी ही (अभि+अनूषत) स्तुति करते हैं। अतः मैं भी तेरे ही यश का गान करता हूँ। मेरी स्तुतियाँ भी सदा तेरे ही यश की गायक होवें ॥३॥
Connotation: - हे भगवन् ! मैं कुछ अन्य याचना नहीं करता। मैं सर्वदा अबाध होकर स्त्री, अपत्यों और बान्धवों के साथ तेरी ही महती कीर्ति को गाऊँ। ये सब मेधावी जन तेरी ही प्रशंसा करते हैं, तथापि तेरे गुणों की समाप्ति नहीं, क्योंकि तू अनन्त है। तेरे गुणों का पार कौन देख सकता है। हे भगवन् ! मुझे स्तुतिवर्धिनी शक्ति दे ॥३॥
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ARYAMUNI

अब कर्मयोगी का यशकीर्तन कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (पुरूवसो) हे अनेकविध ऐश्वर्य्यसम्पन्न ! (इमाः, याः, मम, गिरः) ये जो मेरी आशीर्विषयक वाणियें हैं, वे (त्वा, वर्धन्तु) आपको बढ़ाएँ (पावकवर्णाः) अग्निसमान वर्णवाले (शुचयः) शुद्ध (विपश्चितः) विद्वान् पुरुष (स्तोमैः) यज्ञ द्वारा (अभि, अनूषत) आपकी कीर्ति कथन करते हैं ॥३॥
Connotation: - हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न कर्मयोगिन् ! हम लोग शुभ वाणियों द्वारा आपको आशीर्वाद देते हैं कि परमेश्वर आपको अधिकाधिक ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें। अग्निसमान तेजस्वी सब विद्वान् यज्ञों में आपके यश का गायन करते हैं कि परमात्मा आपको अधिक बढ़ावें और आप हम लोगों की वृद्धि करें ॥३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तस्यैव यशो गेयमिति शिक्षते।

Word-Meaning: - हे पुरुवसो=पुरुषु बहुषु सर्वेषु वसतीति पुरुवसुः सर्वव्यापी। यद्वा। पुरुषु भक्तजनेषु वसतीति पुरुशब्दो मनुष्यवचनः। यद्वा। पुरूणि भूयांसि सर्वाणि वसूनि धनानि यस्य सः। तत्सम्बोधने। हे पुरुवसो=सर्वधन ! ममोपासकस्य। याः। इमाः गिरः=स्तुतयः सन्ति। तास्त्वा=त्वाम्। उ=उद्दिश्य। वर्धन्तु=वर्धन्ताम्। यद्वा। तव यशो वर्धयन्तु। इन्द्र ! इमे। पावकवर्णाः=अग्निसमाः। अतएव शुचयः=शुद्धाः। विपश्चितः=विद्वांसः। स्तोमैः=स्तोत्रैः। त्वामेव। अभि+अनूषत=अभिनुवन्ति= अभिष्टुवन्ति। णु स्तुतौ कुटादिः। अतोऽहमपि त्वामेव स्तौमि। मम स्तुतयोऽपि तवैव यशो गायन्त्विति प्रार्थये ॥३॥
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ARYAMUNI

अथ कर्मयोगिनो यशो वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (पुरूवसो) हे बहुविधैश्वर्य्यसम्पन्न ! (इमाः, याः, मम, गिरः) इमा या मम आशीर्गिरः ताः (त्वा, उ, वर्धन्तु) त्वां वर्धयन्तु “उ” इति पादपूरणः (पावकवर्णाः) अग्निसमानतेजस्काः (शुचयः) शुद्धाः (विपश्चितः) विद्वांसः (स्तोमैः) यज्ञद्वारा (अभि, अनूषत) तव कीर्तिं वाञ्च्छन्ति ॥३॥