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निर॒ग्नयो॑ रुरुचु॒र्निरु॒ सूर्यो॒ निः सोम॑ इन्द्रि॒यो रस॑: । निर॒न्तरि॑क्षादधमो म॒हामहिं॑ कृ॒षे तदि॑न्द्र॒ पौंस्य॑म् ॥

English Transliteration

nir agnayo rurucur nir u sūryo niḥ soma indriyo rasaḥ | nir antarikṣād adhamo mahām ahiṁ kṛṣe tad indra pauṁsyam ||

Pad Path

निः । अ॒ग्नयः॑ । रु॒रु॒चुः॒ । निः । ऊँ॒ इति॑ । सूर्यः॑ । निः । सोमः॑ । इ॒न्द्रि॒यः । रसः॑ । निः । अ॒न्तरि॑क्षात् । अ॒ध॒मः॒ । म॒हाम् । अहि॑म् । कृ॒षे । तत् । इ॒न्द्र॒ । पौंस्य॑म् ॥ ८.३.२०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:3» Mantra:20 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:20


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसकी ही महिमा गाई जाती है।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! जब आप (अन्तरिक्षात्) आकाशप्रदेश से (महाम्+अहिम्) महान् अन्धकार और महाविघ्न को (निः+अधमः) दूर कर देते हैं (तत्) तब आप (पौंस्यम्+कृषे) मनुष्यों का महान् उपकार करते हैं और उस अन्धकार और विघ्न के नष्ट होने पर (अग्नयः) अग्नि=यज्ञ (निः+रुरुचुः) अतिशय प्रकाशित होते हैं (सूर्य्यः+निः) सूर्य्य अतिशय प्रकाशित होता है। और (इन्द्रियः) इन्द्रहितकारी (सोमः+रसः) सोमरस अतिरुचिकर होता है, ऐसे तुमको हम गाते हैं ॥२०॥
Connotation: - हे जननायक नृपराजा तथा उपदेशक आदि प्रजाहितचिन्तक जनो ! जैसे परमात्मा सर्वार्थ विघ्नों को नष्ट किया करता है, वैसे आप भी दुष्टों के निग्रह के लिये यत्न करें, तब ही मनुष्य उपद्रवरहित होंगे ॥२०॥
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ARYAMUNI

अब कर्मयोगी के पुरुषार्थ का फल कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (अन्तरिक्षात्) जब आपने हृदयाकाश से (महां, अहिं) बड़े भारी व्यापक अज्ञानान्धकार को (निरधमः) निकाल दिया (तत्, पौंस्यं, कृषे) वह महापुरुषार्थ किया, तब (अग्नयः) अग्नि (निरुरुचुः) निरन्तर रुचिकारक लगने लगीं (उ) तथा (सूर्यः) सूर्य्य (निः) निरन्तर रुचिवर्धक हो गये (इन्द्रियः, रसः, सोमः) आपका देयभाग सोमरस भी (निः) निःशेषेण रोचक हो गया ॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि जिस पुरुष के अज्ञान की निवृत्ति हो जाती है, वह महापुरुषार्थी कहलाता है और वही पुरुष सूर्य्यादि के प्रकाश, अग्न्याधान तथा सोमादि रसों से उपयोग ले सकता है और उसी को यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड रुचिकर तथा आनन्दप्रद प्रतीत होता है। या यों कहो कि सर्व रसों की राशि, जो आनन्दमय ब्रह्म है, उसकी प्रतीति अज्ञानी को नहीं हो सकती, किन्तु ज्ञानी पुरुष ही उस आनन्द को अनुभव करता है। इसी अभिप्राय से यहाँ ज्ञानी पुरुष के लिये सम्पूर्ण पदार्थों के रोचक होने से आनन्द की प्राप्ति कथन की गई है ॥२०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तस्यैव महिमा प्रगीयते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! यदा। त्वम्। अन्तरिक्षात्=प्रदेशादपि। महाम्=महान्तम्। अहिम्=व्यापकमन्धकारं महाविघ्नञ्च। निः+अधमः=नितरां निष्काशयसि=दूरं गमयसि। तत्=तदा। पौंस्यम्=पुंसां महद् हितम्। कृषे=साधयसि। अहिनिरसने सति। अग्नयः। निः=नितराम्। रुरुचुः=प्रकाशन्ते। तथा। सूर्यः। नीरोचते उ। तथा। इन्द्रियः=इन्द्रस्य हितकरः। सोमो रसः। निः=निरतिशयेन रोचते ॥२०॥
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ARYAMUNI

अथ कर्मयोगिपौरुषफलं कथ्यते।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे कर्मयोगिन् ! (अन्तरिक्षात्) यदा हृदयाकाशात् (महां, अहिं) महद्व्यापकमन्धकारं (निरधमः) निर्गमितवान् (तत्, पौंस्यं, कृषे) तत्पौरुषं कृतवान् तदा (अग्नयः) भौतिकाग्नयः (निरुरुचुः) निःशेषेण मह्यं अरोचिषत (उ) अथ (सूर्यः) सूर्योऽपि (निः) न्यरोचिष्ट (इन्द्रियः, रसः, सोमः) त्वदीयभागः सोमरसोऽपि (निः) न्यरोचिष्ट ॥२०॥