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ये त्रिं॒शति॒ त्रय॑स्प॒रो दे॒वासो॑ ब॒र्हिरास॑दन् । वि॒दन्नह॑ द्वि॒तास॑नन् ॥

English Transliteration

ye triṁśati trayas paro devāso barhir āsadan | vidann aha dvitāsanan ||

Pad Path

ये । त्रिं॒शति॑ । त्रयः॑ । प॒रः । दे॒वासः॑ । ब॒र्हिः । आ । अस॑दन् । वि॒दन् । अह॑ । द्वि॒ता । अ॒स॒न॒म् ॥ ८.२८.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:28» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:35» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

अब इन्द्रियसंयम का उपदेश देते हैं।

Word-Meaning: - (त्रिशति) तीस और उनसे (परः) अधिक (त्रयः) तीन अर्थात् तैंतीस (ये+देवासः) जो देव हैं, वे (बर्हिः) मेरे विस्तीर्ण अन्तःकरणरूप आसन पर (आसदन्) बैठें। चञ्चल चपल होकर इधर-उधर न भागें। यहाँ स्थिर होकर (अह) निश्चित रूप से (विदन्) परमात्मा को प्राप्त करें और (द्विता) दो प्रकार के जो कर्मदेव और ज्ञानदेव हैं, वे दोनों (असनन्) अपने-२ समीप से दुर्व्यसन को फेंकें ॥१॥
Connotation: - ३३ देव। वे कौन हैं, इस पर बहुत विवाद है। वेदों में ३३ तैंतीस देव कहीं गिनाए हुए नहीं हैं, किन्तु वेदों में नियत संख्या का वर्णन आता है। अतः ये तैंतीस देव इन्द्रिय हैं। हस्त, पाद, मूत्रेन्द्रिय, मलेन्द्रिय और मुख, ये पाँच कर्मेन्द्रिय और नयन, कर्ण, घ्राण, रसना और त्वचा, ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं और मन एकादश इन्द्रिय कहलाते हैं। ये उत्तम, मध्यम और अधम भेद से तीन प्रकार के इन्द्रिय ही ३३ तैंतीस प्रकार के देव हैं। इनको अपने वश में रखने और उचित काम में लगाने से ही मनुष्य योगी, ऋषि, मुनि, कवि और विद्वान् होता है। अतः वेद भगवान् इनके सम्बन्ध में उपदेश देते हैं ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अथेन्द्रियसंयममुपदिशति।

Word-Meaning: - त्रिंशति=त्रिंशत्संख्यायाः। परः=परस्तात्। त्रयः। त्रयस्त्रिंशदित्यर्थः। ये देवासः=देवाः=चक्षुरादीनि इन्द्रियाणि। विद्यन्ते। ते मम। बर्हिः=बृहदन्तःकरणमाश्रित्य। आसदन्=आसीदन्तु=उपविशन्तु। चञ्चलानि भूत्वा इतश्चेतश्च मा पलायिषत। एवं तत्र स्थित्वा। अह=निश्चयेन। विदन्=परमात्मानं विदन्तु=जानन्तु। अपि च। द्विता=द्विविधाः=कर्मदेवा ज्ञानदेवाश्च। असनन्=स्वस्वसमीपाद् दुर्व्यसनं अस्यन्तु=क्षिपन्तु=दूरीकुर्वन्तु। हे मनः ! तथा त्वं यतस्व यथा सर्वे इन्द्रियदेवा स्ववशे तिष्ठेयुः ॥१॥