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व॒यं तद्व॑: सम्राज॒ आ वृ॑णीमहे पु॒त्रो न ब॑हु॒पाय्य॑म् । अ॒श्याम॒ तदा॑दित्या॒ जुह्व॑तो ह॒विर्येन॒ वस्यो॒ऽनशा॑महै ॥

English Transliteration

vayaṁ tad vaḥ samrāja ā vṛṇīmahe putro na bahupāyyam | aśyāma tad ādityā juhvato havir yena vasyo naśāmahai ||

Pad Path

व॒यम् । तत् । वः॒ । स॒म्ऽरा॒जः॒ । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । पु॒त्रः । न । ब॒हु॒ऽपाय्य॑म् । अ॒श्याम॑ । तत् । आ॒दि॒त्याः॒ । जुह्व॑तः । ह॒विः । येन॑ । वस्यः॑ । अ॒नशा॑महै ॥ ८.२७.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:27» Mantra:22 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:34» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:22


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SHIV SHANKAR SHARMA

विद्वानों के निकट विनयवचन बोले।

Word-Meaning: - (सम्राजः) हे सबके ऊपर धर्मपूर्वक शासन करनेवाले हे महाधिपति विद्वानो ! (तत्) जिस हेतु आप परमोदार हैं, उस हेतु (वयम्+वः+आवृणीमहे) क्या हम भी आपके निकट माँग सकते हैं ? (पुत्रः+न+बहुपाय्यम्) जैसे पुत्र अपने पिता के निकट बहुत से भोज्य, पेय, लेह्य, चोष्य और परिधेय वस्तु माँगा करता है, (आदित्याः) हे अखण्ड व्रत हे सत्यप्रकाशको ! (हविः+जुह्वतः) शुभकर्म करते हुए हम (तत्+अश्याम) क्या उस धन को पा सकते हैं, (येन) जिससे (वस्यः) धनिकत्व को (अनशामहै) प्राप्त करें अर्थात् हम भी संसार में धनसम्पन्न होवें ॥२२॥
Connotation: - प्रथम हम ऐहलौकिक और पारलौकिक कर्मों में परमनिपुण होवें, पूर्ण योग्यता प्राप्त करें, तब ही हम पुरस्कार के भी अधिकारी होवेंगे। विद्वानों के निकट सदा नम्र होकर विद्याधन ग्रहण करें ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

विदुषां निकटे विनयवचनं ब्रूयात्।

Word-Meaning: - हे सम्राजः=हे सर्वेषां धर्मेण शासकाः, हे महाधिपतयो विद्वांसः ! तत्=तस्माद्धेतोः। वः=युष्माकम्। निकटे। वयमावृणीमहे। अत्र दृष्टान्तः। पुत्रः+न+बहुपाय्यम्=यथा पुत्रः पितृसमीपे। बहुभोज्यपेयादि वस्तु याचते। तद्वत्। हे आदित्याः=हे अखण्डव्रताः ! हविर्जुह्वतः=कर्माणि कुर्वन्तो वयम्। तत्प्रियं वस्तु। अश्याम=प्राप्नुयाम। येन वस्तुना। वस्यः=वसीयः=अतिशयेन वसुमत्वम्। अनशामहै= अश्नवामहै=प्राप्नुमः ॥२२॥