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ऋ॒तावा॑नमृतायवो य॒ज्ञस्य॒ साध॑नं गि॒रा । उपो॑ एनं जुजुषु॒र्नम॑सस्प॒दे ॥

English Transliteration

ṛtāvānam ṛtāyavo yajñasya sādhanaṁ girā | upo enaṁ jujuṣur namasas pade ||

Pad Path

ऋ॒तऽवा॑नम् । ऋ॒त॒ऽय॒वः॒ । य॒ज्ञस्य॑ । साध॑नम् । गि॒रा । उषः॑ । ए॒न॒म् । जु॒जु॒षुः॒ । नम॑सः । प॒दे ॥ ८.२३.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:23» Mantra:9 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - (ऋतायवः) हे सत्यकाम ! हे ईशव्रतपालक जनो ! (नमसस्पदे) यज्ञादि शुभ कर्मों में (ऋतावानम्) सत्यस्वरूप (यज्ञस्य+साधनम्) यज्ञ का साधनस्वरूप (एनम्) इस परमात्मा की (गिरा) वाणी द्वारा (उपोजुजुषुः) सेवा करो ॥९॥
Connotation: - जिस हेतु परमात्मा सत्यस्वरूप है, अतः उसके उपासक भी वैसे होवें और जैसे वह परमोदार है, वैसे उपासक भी होवें। इत्यादि शिक्षाएँ इन मन्त्रों से दी जाती हैं ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋतायवः) हे यज्ञ करने की इच्छावाले ! (ऋतावानम्) यज्ञसम्बन्धी (यज्ञस्य, साधनम्) रक्षक होने से यज्ञ के साधक (एनम्) इस शूर को (नमसः, पदे) स्तुति करनेवाले स्थान में (गिरा) स्पष्टवाणी से (उपो, जुजुषुः) उपसेवन करो ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि याज्ञिक को उचित है कि अपने यज्ञ को निर्विघ्न पूर्ण किया चाहे तो सबसे प्रथम युद्धकुशल शुरवीर की सत्कारयुक्त वाणी से प्रार्थना करके उसका सम्यक् सेवन करे, जिससे विघातक लोग विघ्न न कर सकें, मन्त्र में “जुजुषुः” क्रिया का कर्ता “ऋतायवः” यह सम्बोधन पद आया है, इससे भूतकालिक “लकार” का भी विध्यर्थ में व्यत्यय कर लेना आवश्यक है और “ऋतायवः” यह पद सम्बोधन है। इस ज्ञान का करानेवाला इसका सर्वनिघात स्वर है, क्योंकि किसी पद से परे सम्बोधन पद को “आमन्त्रितस्य च” इस पाणिनिसूत्र से सर्वनिघात हो जाता है ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्तते।

Word-Meaning: - हे ऋतायवः=हे सत्यकामाः ! हे ईशव्रतपालका जनाः ! नमसस्पदे=नमस्कारस्य पदे=यज्ञे। ऋतावानम्= सत्यस्वरूपम्। यज्ञस्य+साधनम्=साधनभूतम्। एनमीशम्। गिरा=वाचा। उपोजुजुषुः=उपासेवध्वम् ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋतायवः) हे ऋतस्य यज्ञस्य कर्तारः ! (ऋतावानम्) यज्ञसम्बन्धिनम् (यज्ञस्य, साधनम्) यज्ञस्य रक्षकत्वात् साधनम् (एनम्) एनं शूरम् (नमसः, पदे) स्तुतीनां प्रारम्भे (गिरा) स्पष्टवाण्या (उपो, जुजुषुः) उपसेवध्वम् ॥९॥