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य॒ज्ञेभि॒रद्भु॑तक्रतुं॒ यं कृ॒पा सू॒दय॑न्त॒ इत् । मि॒त्रं न जने॒ सुधि॑तमृ॒ताव॑नि ॥

English Transliteration

yajñebhir adbhutakratuṁ yaṁ kṛpā sūdayanta it | mitraṁ na jane sudhitam ṛtāvani ||

Pad Path

य॒ज्ञेभिः॑ । अद्भु॑तऽक्रतुम् । यम् । कृ॒पा । सू॒दय॑न्ते । इत् । मि॒त्रम् । न । जने॑ । सुऽधि॑तम् । ऋ॒तऽव॑नि ॥ ८.२३.८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:23» Mantra:8 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:8


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SHIV SHANKAR SHARMA

वही उपासनीय है, यह दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यों ! (अद्भुतक्रतुम्) अद्भुतकर्मवाले (कृपा) कृपावान् (यम्) जिस ईश की मनुष्यगण (शुभकर्मभिः) शुभकर्म द्वारा (सूदयन्ते+इत्) उपासना करते ही हैं और जो परमात्मा (ऋतावनि) सत्यपालक और पवित्र नियमानुकारी (जने) मनुष्य में (मित्रम्+न) मित्र के समान रहता है और जो (सुधितः) सबका धेय है, उसी की सेवा करो ॥८॥
Connotation: - वह सत्यस्वरूप ईश उसी जन पर प्रसन्न होता है, जो सत्यपरायण और कर्मनिष्ठ है ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यम्) जिस (कृपा) स्वसामर्थ्य से (अद्भुतक्रतुम्) अद्भुतकर्मोंवाले (ऋतावनि, जने) यज्ञ करनेवाले मनुष्य में (मित्रम्, न) मित्र के समान (सुधितम्) तृप्त रहनेवाले विद्वान् को यष्टा लोग (यज्ञेभिः) उसके उद्देश्य से अनेक यज्ञों द्वारा (सूदयन्ते, इत्) अनुकूल ही रखते हैं ॥८॥
Connotation: - वह याज्ञिक विद्वान् यज्ञ को जिसका ऋत=सत्य नाम है, इस नाम को सार्थक करके प्रजा को सत्यपरायण तथा सदाचारवर्ती बनाकर इस मनुष्यजन्म के लक्ष्य को सफल करें ॥८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

स उपासनीय इति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे मनुष्याः ! अद्भुतक्रतुम्=अद्भुतकर्माणम्। कृपा=कृपावन्तम्। यमीशम्। यज्ञेभिः=शुभकर्मभिः। जनाः। सूदयन्ते+इत्= उपासत एव। हे नराः। ऋतावनि=सत्यवति पवित्रनियमपालके। जने। मित्रं+न=मित्रमिव। यो वर्तते। यश्च। सुधितः=सुध्यातोऽस्ति। तमेव सेवध्वम् ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यम्) यं विद्वांसम् (कृपा) सामर्थ्येन (अद्भुतक्रतुम्) विचित्रकर्माणम् (ऋतावनि, जने) यज्ञवति मनुष्ये (मित्रम्, न) मित्रमिव (सुधितम्) प्रतृप्तम् (यज्ञेभिः) तदीययज्ञद्वारा (सूदयन्ते, इत्) अनुकूलयन्ति हि यष्टारः ॥८॥