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उप॑ त्वा॒ कर्म॑न्नू॒तये॒ स नो॒ युवो॒ग्रश्च॑क्राम॒ यो धृ॒षत् । त्वामिद्ध्य॑वि॒तारं॑ ववृ॒महे॒ सखा॑य इन्द्र सान॒सिम् ॥

English Transliteration

upa tvā karmann ūtaye sa no yuvograś cakrāma yo dhṛṣat | tvām id dhy avitāraṁ vavṛmahe sakhāya indra sānasim ||

Pad Path

उप॑ । त्वा॒ । कर्म॑न् । ऊ॒तये॑ । सः । नः॒ । युवा॑ । उ॒ग्रः । च॒का॒म॒ । यः । धृ॒षत् । त्वाम् । इत् । हि । अ॒वि॒तार॑म् । व॒वृ॒महे॑ । सखा॑यः । इ॒न्द्र॒ । सा॒न॒सिम् ॥ ८.२१.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:21» Mantra:2 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

वही सेव्य है, यह इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र (ऊतये) रक्षा के लिये (कर्मन्) प्रत्येक शुभकर्म में (त्वा) तुझको (उप) आश्रय बनाते हैं। (यः) जो इन्द्र (धृषत्) सर्व विघ्न का विनाश करता है, (युवा) जो सदा एकरस (उग्रः) और उग्र है, (सः) वह (नः) हम लोगों को (चक्राम) प्राप्त हो। अथवा हमको उत्साहित करे। हे इन्द्र ! (त्वाम्+इत्) तुझको ही (अवितारम्) अपना रक्षक और (सानसिम्) सेवनीय (सखायः) हम मनुष्यगण (ववृमहे) स्वीकार करते हैं, मानते हैं ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! जैसे हम ऋषिगण उसी परमात्मा की उपासना करते हैं, वैसे आप लोग भी करें ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (कर्मणि) कर्म को प्रारम्भ करने पर (ऊतये) रक्षार्थ (त्वा, उप) आप ही के समीप आते हैं (सः) क्योंकि वह सेनापति आप (युवा) युवावस्थावाले अतएव (उग्रः) रक्षा करने में समर्थ (नः) हमारे समीप (चक्राम) आते हैं (यः) जो (धृषत्) शत्रुओं को अभिभव प्राप्त करते हैं (इन्द्र) हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न ! (सखायः) आपके मित्र हम लोग (अवितारम्) रक्षा करनेवाले (सानसिम्) सम्यक् भजनीय (त्वाम्, इत्, हि) आपको ही (ववृमहे) शरणरूप से आश्रयण करते हैं ॥२॥
Connotation: - भाव यह है कि बड़े-२ विघ्नों का निवृत्त करना सेनाध्यक्ष ही के अधीन है, अतएव सम्राट् को चाहिये कि सेनाध्यक्ष उसी को बनावे, जो युवा तथा उत्साहसम्पन्न हो और जो प्रजाजनों की भले प्रकार रक्षा करनेवाला हो ॥२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

स एवाश्रयणीय इति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! ऊतये=रक्षणाय। कर्मन्=कर्मणि कर्मणि। त्वा=त्वामुपाश्रयामः। य इन्द्रः। धृषत्=धृष्णोति=विघ्नान् अभिभवति। पुनः। युवा=मिश्रणकारी। यद्वा। सदैकरसः। पुनः। उग्रः। सः। नः=अस्मान्। चक्राम=आगच्छतु। यद्वा। चक्राम=अस्मान् उत्साहयुक्तान् करोतु। अवितारम्=रक्षितारम्। सानसिम्=संभजनीयम्। त्वामित्=त्वामेव। सखायः= वयम्=ववृमहे=वृणीमहे। हि=प्रसिद्धौ ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (कर्मणि) कर्मणि समारब्धे (ऊतये) रक्षायै (त्वा, उप) त्वामेवोपगच्छामः (सः) स सेनापतिः (युवा) तरुणः (उग्रः) बलवान् (नः) अस्मान् (चक्राम) आगच्छति (यः) यो हि (धृषत्) अभिभवति रिपून् (इन्द्र) हे ऐश्वर्यसम्पन्न ! (सखायः) त्वन्मित्राणि वयम् (अवितारम्) रक्षितारम् (सानसिम्) संभजनीयम् (त्वाम्, इत्, हि) त्वामेव (ववृमहे) शरणत्वेन स्वीकुर्मः ॥२॥