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अ॒भ्रा॒तृ॒व्यो अ॒ना त्वमना॑पिरिन्द्र ज॒नुषा॑ स॒नाद॑सि । यु॒धेदा॑पि॒त्वमि॑च्छसे ॥

English Transliteration

abhrātṛvyo anā tvam anāpir indra januṣā sanād asi | yudhed āpitvam icchase ||

Pad Path

अ॒भ्रा॒तृ॒व्यः । अ॒ना । त्वम् । अना॑पिः । इ॒न्द्र॒ । ज॒नुषा॑ । स॒नात् । अ॒सि॒ । यु॒धा । इत् । आ॒पि॒ऽत्वम् । इ॒च्छ॒से॒ ॥ ८.२१.१३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:21» Mantra:13 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:13


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसके गुण गाने योग्य हैं, यह इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (जनुषा) संसार के जन्म के साथ-२ (सनात्) सर्वदा (अभ्रातृव्यः+असि) तू शत्रुरहित है। (अना) तेरा नायक कोई नहीं (त्वम्+अनापिः) तू बन्धुरहित है (युधा+इत्) युद्ध द्वारा (आ+पित्वम्) बन्धुता को (इच्छसे) चाहता है ॥१३॥
Connotation: - यद्यपि परमेश्वर सर्वोपाधिरहित है, तथापि इसका बन्धु जीवात्मा है, उस जीवात्मा को इस संसार में विजयी देखना चाहता है, जो विजयी होता है, वही उसका वास्तविक बन्धु है ॥१३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमैश्वर्यसम्पन्न सेनापते ! (त्वम्) आप (अभ्रातृव्यः) शत्रुरहित (अना) स्वतन्त्र तथा (जनुषा) जन्म ही से (सनात्) सदा (अनापिः, असि) बन्धुरहित रहते हैं (युधा, इत्) केवल संग्राम ही से (आपित्वम्) सम्बन्ध को (इच्छसे) चाहते हैं ॥१३॥
Connotation: - सेनापति को जन्म ही से बन्धुरहित इसलिये कहा है कि वह बाल्यावस्था में ब्रह्मचर्यव्रत द्वारा विविध शस्त्रास्त्र सीखने के लिये वन्धुओं से वियुक्त रहता है, फिर शिक्षित होने पर विविध रक्षाओं में तत्पर रहने के कारण सामान्य जन के समान बान्धवों के साथ नहीं रहने पाता और संग्राम में सम्बन्ध को चाहना इसलिये कहा है कि बलप्रधान होने के कारण इसका सम्बन्ध बल ही के द्वारा होता है अर्थात् बलवान् शत्रु पराजित होकर और सामान्य प्रजाजन उसके प्रताप को सुनकर सम्बन्धी हो जाते हैं ॥१३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तदीयगुणा गेया इति दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! त्वम्। जनुषा=जन्मना। सनादेव=चिरादेव। अभ्रातृव्यः=शत्रुरहितः। अना=अनायकः। अनापिः=अबन्धुः। युधा=युद्धेन। आपित्वम्। इच्छसे=इच्छसि ॥१३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमैश्वर्ययुक्त सेनापते ! (त्वम्, अभ्रातृव्यः) अशत्रुः (अना) अनेतृकः (जनुषा) जन्मना (सनात्) सदा (अनापिः) बन्धुरहितः (असि) भवसि (युधा, इत्) संग्रामेणैव (आपित्वम्) सम्बन्धम् (इच्छसे) वाञ्छसि ॥१३॥