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यून॑ ऊ॒ षु नवि॑ष्ठया॒ वृष्ण॑: पाव॒काँ अ॒भि सो॑भरे गि॒रा । गाय॒ गा इ॑व॒ चर्कृ॑षत् ॥

English Transliteration

yūna ū ṣu naviṣṭhayā vṛṣṇaḥ pāvakām̐ abhi sobhare girā | gāya gā iva carkṛṣat ||

Pad Path

यूनः॑ । ऊँ॒ इति॑ । सु । नवि॑ष्ठया । वृष्णः॑ । पा॒व॒कान् । अ॒भि । सो॒भ॒रे॒ । गि॒रा । गाय॑ । गाःऽइ॑व । चर्कृ॑षत् ॥ ८.२०.१९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:20» Mantra:19 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:39» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:19


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी विषय की आवृत्ति है।

Word-Meaning: - (चर्कृषत्) किसान (गाः+इव) जैसे युवा बैलों की प्रशंसा करता और कार्य्य में लगाता तद्वत् (सोभरे) हे भरण-पोषण करनेवाले मनुष्य ! आप (यूनः) तरुण (वृष्णः) सुख पहुँचानेवाले (पावकान्) और तेजस्वी सैनिकजनों को (ऊषु) अच्छी रीति से (अभिगाय) आदर कीजिये और काम में लगाइये ॥१९॥
Connotation: - गृहस्थजन क्षेत्रोपकारी बैल इत्यादिक साधनों को अच्छी तरह से पालते और काम में लगाते, वैसे ही प्रजाजन सेनाओं को पालें और काम में लगावें ॥१९॥
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ARYAMUNI

अब सब योद्धाओं के स्वामी राजा का सम्बोधन करके वीरसत्कार का उपदेश कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (सोभरे) हे भलीभाँति प्रजा के पोषक अथवा शत्रु के हरनेवाले राजन् ! तुम (यूनः) जो तरुण हों (उ) और (वृष्णः) बलिष्ठ, शस्त्रों की वर्षा करनेवाले तथा (पावकान्) अग्निज्वाला के समान शत्रुसंहार में शीघ्रता करनेवाले हों, ऐसे योद्धाओं को (नविष्ठया, गिरा) नई नई वाणियों=शिक्षावाक्यों से (सु) भलीभाँति (अभिगाय) प्रशंसित बनाओ, जैसे (चर्कृषत्) अत्यन्त कर्मों में लगानेवाला मनुष्य (गा इव) तरुण वृषों को प्रशंसनीय बनाता है अथवा “चर्कृषत्”=अत्यन्त कर्मों में लगानेवाला कर्मयोगी “गा इव”=इन्द्रियों को प्रशंसनीय बनाता है ॥१९॥
Connotation: - हे प्रजाओं का पालन-पोषण करनेवाले राजन् ! तुम तरुण तथा बलिष्ठ प्रजाजनों को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा द्वारा सुशिक्षित बनाओ। जैसे गोपालक तरुण वृषों को सुशिक्षित बनाकर कृषि आदि विविध कार्यों में लगाता और जैसे कर्मयोगी इन्द्रियों को वशीभूत करके अनेकविध कार्यों को सिद्ध करता है, इसी प्रकार राजा को उचित है कि वह संयमी पुरुषों की इन्द्रियों के समान अपने योद्धाओं को सुशिक्षित तथा युद्धकार्य्य में निपुण बनाकर उनका सदैव सत्कार करता रहे, ताकि वे शत्रुसमुदाय पर विजयप्राप्त करते हुए प्रजा को सुरक्षित रखें ॥१९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तस्यैव विषयस्यावृत्तिः।

Word-Meaning: - चर्कृषत्=पुनः पुनः कृषन् कृषीवलः। गा इव=वृषभान् इव। हे सोभरे=शोभनभरणकर्त्तस्त्वम्। यूनः=तरुणान्। वृष्णः=वर्षिष्ठान्। पावकान्=तेजस्विनो मरुतः। नविष्ठ्या=अतिशयेन अभिनवया। गिरा=वाचा। ऊषु=शोभनमसि। अभिगाय=अभिष्टुहि। यथा कृषीवलो यूनोऽनडुहः प्रशंसति स्वकार्य्ये नियोजयति च तथैव सैनिकजनानपि इतरो जनः प्रशंसेत् नियोजयेच्च ॥१९॥
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ARYAMUNI

सम्प्रति योद्धृस्वामिनं राजानं संबोध्य तेषां सत्क्रिया वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (सोभरे) हे सुष्ठुप्रजाभरणशील, शत्रुहरणशील वा राजन् ! (यूनः) ये तरुणाः (उ) अथ (वृष्णः) बलिष्ठाः शस्त्रस्य वर्षका वा (पावकान्) अग्नय इव शत्रुनाशने त्वरकाः तान् (नविष्ठया, गिरा) नूतनया वाचा (सु) सुष्ठु (अभिगाय) अभिप्रशंस (चर्कृषत्) यथा अत्यन्तं कार्येषु सज्जयिता कश्चित् (गाः इव) बलीवर्दान् सत्कृत्य प्रशंसति अथवा चर्कृषत्=भृशं कार्यसंसक्तः कर्मयोगी इव=यथा गाः=इन्द्रियाणि सत्कृत्य स्तौति तद्वत् ॥१९॥