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शुचि॑रसि पुरुनि॒ष्ठाः क्षी॒रैर्म॑ध्य॒त आशी॑र्तः । द॒ध्ना मन्दि॑ष्ठ॒: शूर॑स्य ॥

English Transliteration

śucir asi puruniṣṭhāḥ kṣīrair madhyata āśīrtaḥ | dadhnā mandiṣṭhaḥ śūrasya ||

Pad Path

शुचिः॑ । अ॒सि॒ । पु॒रु॒निः॒ऽस्थाः । क्षी॒रैः । म॒ध्य॒तः । आऽशी॑र्तः । द॒ध्ना । मन्दि॑ष्ठः । शूर॑स्य ॥ ८.२.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

स्वकर्मों से ईश्वर को प्रसन्न करो, यह वाञ्छा इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे जीव ! तू (शुचिः) पवित्र (असि) है तू (पुरुनिष्ठाः) बहुत पदार्थों में स्थित है। तू (मध्यतः) मध्य में अर्थात् जन्म से परकाल में (क्षीरैः) पहिले ही ईश्वरद्वारा माता के स्तनद्वय में प्रदत्त दुग्धों से तथा (दध्ना) दधि से (आशीर्तः) पुष्ट हुआ है। वह तू (शूरस्य) परमबलिष्ठ परमात्मा का (मन्दिष्ठः) अत्यन्त आनन्ददायी बन ॥९॥
Connotation: - मनुष्य प्रथम सर्व प्रकार से पवित्र और परोपकारी बनें, तदनन्तर अपने विशुद्ध कर्मों से उसके आनन्दप्रद होवें ॥९॥
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ARYAMUNI

अब वीरों के लिये बलकारक भक्ष्य पदार्थों का विधान कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे आह्लादजनक उत्तम रस ! तुम (शुचिः, असि) शुद्ध हो (पुरुनिष्ठाः) अनेक कर्मयोगियों में रहनेवाले हो (क्षीरैः, दध्ना) क्षीर दध्यादि शुद्ध पदार्थों के (मध्यतः, आशीर्तः) मध्य में संस्कृत किये गये हो (शूरस्य, मन्दिष्ठः) शूरवीर कर्मयोगी के हर्ष को उत्पन्न करनेवाले हो ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में पुष्टिकारक तथा आह्लादजनक दूध-घृतादि पदार्थों की महिमा वर्णन की गई है अर्थात् कर्मयोगी शूरवीरों के अङ्ग प्रत्यङ्ग दूध, दधि तथा घृतादि शुद्ध पदार्थों से ही सुसंगठित तथा सुरूपवान् होते हैं, तमोगुण-उत्पादक मादक द्रव्यों से नहीं, इसलिये प्रत्येक पुरुष को उक्त पदार्थों का ही सेवन करना चाहिये, हिंसा से प्राप्त होनेवाले तथा मादक द्रव्यों का नहीं ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

स्वकर्मभिरीश्वरं प्रसादयेति वाञ्छानया दर्शयति।

Word-Meaning: - हे जीव ! त्वं शुचिः=पूतोऽसि। त्वं पुरुनिष्ठाः=बहुषु स्थितः। त्वं मध्यतः=जन्मनः परे काले। क्षीरैः=ईश्वरेण पूर्वमेव मातृस्तनयोर्मध्ये प्रदत्तैर्दुग्धैः। दध्ना च। आशीर्तः=संस्कृतः पोषितोऽसि। स त्वं शूरस्य=परमविक्रान्तस्य इन्द्राभिधायिनः परमेश्वरस्य। मन्दिष्ठः=स्वकर्मणा मादयितृतमो भव ॥९॥
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ARYAMUNI

अथ वीरेभ्यो बलोत्पादकभक्ष्यपदार्था उच्यन्ते।

Word-Meaning: - हे आह्लादक सौम्यरस ! त्वं (शुचिः, असि) शुद्धोऽसि (पुरुनिष्ठाः) बहुषु कर्मयोगिषु स्थितिशीलः (क्षीरैः, दध्ना) पयोभिः दध्ना च (मध्यतः, आशीर्तः) मध्यभागे वासितः (शूरस्य, मन्दिष्ठः) शूरस्य कर्मयोगिनो हर्षोत्पादकश्चासि ॥९॥