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त्रय॒ इन्द्र॑स्य॒ सोमा॑: सु॒तास॑: सन्तु दे॒वस्य॑ । स्वे क्षये॑ सुत॒पाव्न॑: ॥

English Transliteration

traya indrasya somāḥ sutāsaḥ santu devasya | sve kṣaye sutapāvnaḥ ||

Pad Path

त्रयः॑ । इन्द्र॑स्य । सोमाः॑ । सु॒तासः॑ । स॒न्तु॒ । दे॒वस्य॑ । स्वे । क्षये॑ । सु॒त॒ऽपाव्नः॑ ॥ ८.२.७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:7


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SHIV SHANKAR SHARMA

सब लोक इसके प्रिय होवें, यह प्रार्थना इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (देवस्य) दीप्तिमान् प्रकाशरूप और (सुतपाव्नः) सृष्टिरचनारूप यज्ञ के निमित्त विरचित पदार्थों का नाम यहाँ सुत है। उनके रक्षक वा संहारकर्ता (इन्द्रस्य) इन्द्रवाच्य परमात्मा के (त्रयः) ये तीनों लोक ही (स्वे+क्षये) निज भवन में ही (सोमाः) सोमरसवत् प्रिय (सन्तु) होवें और (सुतासः) यज्ञार्थनिष्पादित वस्तु के समान होवें ॥७॥
Connotation: - हम लोग उसको क्या दे सकते हैं। उसके जो ये तीनों लोक हैं, वे ही यज्ञिय पदार्थ के समान प्रिय होवें। अथवा उसके जो ये तीन लोक हैं, वे ही सबको सोमवत्=सुतवत् प्रिय होवें ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुतपाव्नः) संस्कृत पदार्थों का सेवन करनेवाले (देवस्य) दिव्य तेजस्वी (इन्द्रस्य) कर्मयोगी को (स्वे, क्षये) स्वकीययज्ञसदन में (त्रयः, सोमाः) तीन सोम भाग (सुतासः, सन्तु) दान के लिये संस्कृत हों ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र का तात्पर्य्य यह है कि तेजस्वी कर्मयोगी के लिये पुनः-पुनः अर्चननिमित्त तीन सोम-भागों के संस्कार का विधान है अर्थात् यज्ञ में आये हुए कर्मयोगी को आगमन, मध्य और गमनकाल में सोमादि उत्तमोत्तम पदार्थ अर्पण करे, जिससे वह प्रसन्न होकर विद्यादि सद्गुणों का उपदेश करके जिज्ञासुओं को अनुष्ठानी बनावे ॥७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्वे लोका अस्य प्रिया भवन्त्विति प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - देवस्य=दीप्तिमतः प्रकाशरूपस्य। सुतपाव्नः=सुतान् सृष्टियज्ञाय निष्पादितान् सर्वान् पदार्थान् पाति रक्षति पिबति संहरतीति वा। तस्य इन्द्रस्य। स्वे=निजे। क्षये=स्थाने धाम्नि। त्रयः=त्रयो लोकाः। सोमाः=सोमवत्। तथा। सुतासः=सुता यज्ञनिष्पादिताः पदार्था इव। सन्तु=प्रिया भवन्तु। वयं तस्मै किं दास्यामः। तस्यैव य इमे त्रयो लोकाः सन्ति। त एव यज्ञियपदार्था इव भवन्तु। यद्वा। अस्य इम एव त्रयो लोकाः सर्वेषामस्माकं सोमवत् सुतवच्च प्रिया भवन्तु ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुतपाव्नः) संस्कृतपदार्थभोक्तुः (देवस्य) दिव्यतेजसः (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः (स्वे, क्षये) स्वे यज्ञसदने (त्रयः) त्रिसंख्याकाः (सोमाः) शोभनभागाः (सुतासः) संस्कृताः (सन्तु) दानाय भवन्तु ॥७॥