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शिक्षा॑ विभिन्दो अस्मै च॒त्वार्य॒युता॒ दद॑त् । अ॒ष्टा प॒रः स॒हस्रा॑ ॥

English Transliteration

śikṣā vibhindo asmai catvāry ayutā dadat | aṣṭā paraḥ sahasrā ||

Pad Path

शिक्ष॑ । वि॒भि॒न्दो॒ इति॑ विऽभिन्दो । अ॒स्मै॒ । च॒त्वारि॑ । अ॒युता॑ । दद॑त् । अ॒ष्ट । प॒रः । स॒हस्रा॑ ॥ ८.२.४१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:41 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:41


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SHIV SHANKAR SHARMA

परमात्मा से ही याचना करनी चाहिये, यह शिक्षा इससे देते हैं।

Word-Meaning: - (विभि१न्दो) हे पुरन्दर=दुष्ट जनों का विशेषरूप से विनाश करनेवाले और शिष्टों के रक्षक ईश ! (ददत्) यद्यपि तू आवश्यकता के अनुसार सबको यथायोग्य दे ही रहा है। तथापि (अस्मै) इस मुझ उपासक को (चत्वारि) चा२र (अयुता) अयुत १०००–० दश सहस्र=१००००*४=४०००० अर्थात् चालीस सहस्र धन (शि३क्ष) दे तथा (परः) इससे भी अधिक (अष्ट+सहस्रा) आठ सहस्र धन दे ॥४१॥
Connotation: - यद्यपि परमात्मा प्रतिक्षण दान दे रहा है, तथापि पुनः-पुनः उसके समीप पहुँच कर अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्त्यर्थ निवेदन करें और जो नयनादि दान दिए हुए हैं, उनसे काम लेवें ॥४१॥
Footnote: १−विभिन्दु−भिदिर् विदारणे। पुरन्दर और विभिन्दु दोनों एकार्थक हैं। जो दुष्टों के नगरों को छिन्न-भिन्न करके नष्ट कर देता है, वह विभिन्दु। २−चार अयुत। इसका यह भी भाव निकलता है कि १−नयन, २−कर्ण, ३−घ्राण और ४−रसना, ये चारों इन्द्रिय, मानो अयुत अर्थात् पृथक्-२ विद्यमान हैं। जो युत न हो, वह अयुत। और ये ही चारों क्रिया यद्वा संख्याभेद से आठ हैं−दो नयन, दो कर्ण, दो घ्राण और रसना में दो क्रियाएँ हैं−एक स्वाद लेना और दूसरा भाषण करना। ये आठों, मानो सहस्र अर्थात् सहसा प्रवृत्त होनेवाले हैं। यदि अयुत और सहस्र दोनों संख्या ही अपेक्षित हो, तो इस पक्ष में यह भाव होगा, मानो ये नयन आदि चारों इन्द्रिय चार अयुत के सम हैं। और ये आठों, मानो आठ सहस्र के तुल्य हैं। ३−शिक्ष−वेद में शिक्ष धातु दानार्थक होता है ॥४१॥
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ARYAMUNI

अब कर्मयोगी के संग्राम की विविध सामग्री का वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (विभिन्दो) हे शत्रुकुल के भेदन करनेवाले (ददत्) दाता कर्मयोगिन् ! आप (अस्मै) मेरे लिये (अष्टा, सहस्रा, परः) आठ सहस्र अधिक (चत्वारि, अयुता) चार अयुत (शिक्षा) देते हैं ॥४१॥
Connotation: - सूक्त में क्षात्रधर्म का प्रकरण होने से इस मन्त्र में ४८००० अड़तालीस हज़ार योद्धाओं का वर्णन है अर्थात् कर्मयोगी के प्रति जिज्ञासुजनों की यह प्रार्थना है कि आप शत्रुओं के दमनार्थ हमको उक्त योद्धा प्रदान करें, जिससे शान्तिमय जीवन व्यतीत हो ॥४१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

परमात्मानमेव याचेतेत्यनया शिक्षते।

Word-Meaning: - हे विभिन्दो=हे पुरन्दर ! दुष्टान् विशेषेण भिनत्ति यः स विभिन्दुः तत्सम्बोधने। हे दुरितनिवारक ! शिष्टानुग्राहक ! ईश ! त्वम्। ददत्=यद्यप्यावश्यकतानुसारेण सर्वेभ्यः प्राणिभ्यो दानं ददद् वर्तसे। तथाप्यहं याचे। त्वम्। अस्मै=तव समीपे उपस्थिताय मह्यम्। चत्वारि अयुता=अयुतानि दशसहस्राणि। चत्वारिंशत्सहस्राणीति यावत्। धनानामिति शेषः। शिक्ष=देहि। शिक्षतिर्दानकर्मा। परः=परस्तादूर्ध्वमपि। अष्टा सहस्रा=अष्टसंख्याकानि सहस्राणि। शिक्ष ॥४१॥
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ARYAMUNI

अथ कर्मयोगिनः संग्रामसामग्री वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (विभिन्दो) हे शत्रुकुलभिन्दनशील (ददत्) दाता भवान् ! (अस्मै) मह्यं (अष्टा, सहस्रा, परः) अष्टसहस्राधिकानि (चत्वारि, अयुता) चत्वारि अयुतानि (शिक्षा) ददाति ॥४१॥