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यस्मि॒न्विश्वा॑श्चर्ष॒णय॑ उ॒त च्यौ॒त्ना ज्रयां॑सि च । अनु॒ घेन्म॒न्दी म॒घोन॑: ॥

English Transliteration

yasmin viśvāś carṣaṇaya uta cyautnā jrayāṁsi ca | anu ghen mandī maghonaḥ ||

Pad Path

यस्मि॑न् । विश्वाः॑ । च॒र्ष॒णयः॑ । उ॒त । च्यौ॒त्ना । ज्रयां॑सि । च॒ । अनु॑ । घ॒ । इत् । म॒न्दी । म॒घोनः॑ ॥ ८.२.३३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:33 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:33


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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर सर्वाधार है, यह इससे दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (यस्मिन्) जिस इन्द्र में (विश्वाः) सब स्थावर जङ्गम (चर्षणयः) प्रजाएँ और पदार्थ स्थित हैं (उत) और जिसमें (च्यौत्ना) च्युतिशील विनश्वर कार्यरूप जगत् अथवा बल स्थित हैं (ज्रयांसि) जिसमें जयशील परमाणुरूप वस्तु स्थित हैं, वह इन्द्र (मघोनः) ज्ञानी पुरुषों का (अनु+घ+इत्) अवश्य (अनु+मन्दी) अनुमोदक होता है। अथवा जो इन्द्र (मन्दी) स्तुति योग्य है और जो (मघोनः) ज्ञानी पुरुषों के ऊपर अनुग्रह करता है, वह इन्द्र सबका स्तुत्य पूज्य है ॥३३॥
Connotation: - जिसके अधीन यह अनन्त और अद्भुत जगत् है, हे मनुष्यो ! उसको त्याग अन्य जड़ देवों को क्योंकर गाते हो, क्योंकि अन्य देव मनोरथ पूर्ण नहीं कर सकते। परन्तु परमात्मा की कृपा सर्वदा तुम्हारी रक्षक है, यह विचार कर उसी को गाओ, यह आशय है ॥३३॥
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ARYAMUNI

अब कर्मयोगी को धनवान् प्रजाओं की रक्षा करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (यस्मिन्) जिस कर्मयोगी के आधार पर (विश्वाः, चर्षणयः) सम्पूर्ण प्रजा हैं (उत) और (च्यौत्ना, ज्रयांसि, च) जिसमें दूसरों का अभिभव करनेवाले बल हैं (मघोनः, अनु) वह धनवानों के प्रति (मन्दी, घेत्) आनन्ददाता होता है ॥३३॥
Connotation: - सबका शासक कर्मयोगी, जो अपने अतुल बल से सब प्रजाओं को वशीभूत रखता है, वह धनवानों को सुरक्षित रखता हुआ उनको आनन्द प्रदान करनेवाला होता है ॥३३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्वाधार ईश्वरोऽस्तीति दर्शयति।

Word-Meaning: - यस्मिन् इन्द्रे। विश्वाः=सर्वाः स्थावरा जङ्गमाश्च। चर्षणयः=प्रजाः पदार्थाश्च सन्निविष्टा वर्तन्ते। उत=अपि च। च्यौत्ना=च्यौत्नानि च्युतिशीलानि विनश्वराणि कार्यरूपाणि वस्तूनि बलानि वा। च पुनः। ज्रयांसि=जयशीलानि परमाणुरूपानि वस्तूनि यस्मिन् वर्तन्ते। स इन्द्रः। मघोनः=मघं स्तुतिरूपं धनं तद्वतो यजमानान्। अनुमन्दी=अनुमोदको भवति। घेदिति पूरकौ। यद्वा। मन्दी स्तुत्यः स इन्द्रस्ताननुगृह्णातीति शेषः। अथवा यस्य मघोनः धनवत इन्द्रस्य। मन्दी=स्तोता। अनु=अनुकूलो भवति। एष एतान्युत्तरत्रैकवाक्यता ॥३३॥
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ARYAMUNI

अथ कर्मयोगिना धनवतां रक्षणं कथ्यते।

Word-Meaning: - (यस्मिन्) यस्मिन् आधारभूते कर्मयोगिनि (विश्वाः, चर्षणयः) सर्वाः प्रजाः (उत) अथ (च्यौत्ना, ज्रयांसि, च) अभिभावकानि बलानि च (मघोनः, अनु) स धनवतः अनु (मन्दी, घेत्) आनन्दयिताऽस्ति ॥३३॥