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आ तू षि॑ञ्च॒ कण्व॑मन्तं॒ न घा॑ विद्म शवसा॒नात् । य॒शस्त॑रं श॒तमू॑तेः ॥

English Transliteration

ā tū ṣiñca kaṇvamantaṁ na ghā vidma śavasānāt | yaśastaraṁ śatamūteḥ ||

Pad Path

आ । तु । सि॒ञ्च॒ । कण्व॑ऽमन्तम् । न । घ॒ । वि॒द्म॒ । श॒व॒सा॒नात् । य॒शःऽत॑रम् । श॒तम्ऽऊ॑तेः ॥ ८.२.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:22


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SHIV SHANKAR SHARMA

सब ही यथाशक्ति दान देवें।

Word-Meaning: - हे उपासकगण ! जैसे परमात्मा तुमको प्रतिक्षण दान दे रहा है, वैसे ही तुम भी (तु) कार्य्याकार्य्य विचार कर शीघ्र (आसिञ्च) पात्रों में ज्ञान विज्ञान धन की वर्षा करो, जो धन (कण्वमन्तम्) विद्वानों से प्रदर्शित है। यद्वा (कण्वमन्तम्) जिस परमात्मा के मार्ग को विद्वद्गण ने दिखलाया है, उसके उद्देश से पात्रों में धन सींचो। जिस कारण (शवसानात्) वह ज्ञानविज्ञानरूप महाबल का दाता है और (शतमूतेः) प्रतिदिन अनन्त साहाय्य दे रहा है। हे मनुष्यो ! इससे बढ़कर (यशस्तरम्) यशस्वी कौन है (न+घ+विद्म) हम लोग नहीं जानते हैं। हे उपासकगण ! उसी के आश्रय से ज्ञानवान् बलवान् और यशस्वी होओगे, यह निश्चय कर उसकी उपासना करो ॥२२॥
Connotation: - जैसे परमात्मा अनन्त साहाय्यप्रदाता है, वैसे तुम भी लोगों में साहाय्य करो। जैसे वह ज्ञानबल है, वैसे ही तुम ज्ञानी और बली होओ। जैसे वह महायशस्वी है, वैसे ही तुम भी यशों का उपार्जन करो और पात्रों में ज्ञानधन की वर्षा करो ॥२२॥
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ARYAMUNI

अब यज्ञ में आये हुए कर्मयोगी का सत्कार करना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे जिज्ञासु जनो ! (कण्वमन्तं) विद्वानों से युक्त कर्मयोगी की (तु) शीघ्र (आ, सिञ्च) अभिषेकादि से अर्चना करो (शवसानात्) बल के आधार (शतमूतेः) अनेक प्रकार से रक्षा करने में समर्थ कर्मयोगी से (यशस्तरं) यशस्वितर अन्य को (न, घ, विद्म) हम नहीं जानते ॥२२॥
Connotation: - याज्ञिक लोगों का कथन है कि हे जिज्ञासु जनसमुदाय ! तुम सब मिलकर विद्वानों सहित आये हुए कर्मयोगी का अर्चन तथा विविध प्रकार से सेवा सत्कार करो, जो विद्वान् महात्माओं के लिये अवश्यकर्तव्य है। ये बलवान्, यशस्वी तथा अनेक प्रकार से रक्षा करनेवाले योगीराज प्रसन्न होकर हमें विद्यादान द्वारा कृतार्थ करें, क्योंकि इनके समान यशस्वी, प्रतापी तथा वेदविद्या में निपुण अन्य कोई नहीं है ॥२२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्वः खलु यथाशक्ति दानं दद्यात्।

Word-Meaning: - हे उपासक ! परमात्मा यथा तुभ्यं प्रतिक्षणं दानं ददाति, तथैव त्वमपि कार्य्याकार्य्यं विचार्य्य। तु=शीघ्रम्। आसिञ्च=पात्रेषु ज्ञानविज्ञानधनं वर्षय। कीदृशं धनम्। कण्वमन्तम्=विद्वद्भिः प्रदर्शितम्। यद्वा। कण्वमन्तमितीन्द्रस्य विशेषणम्। कण्वैर्मेधाविभिः प्रदर्शितमिन्द्रमुद्दिश्य पात्रेषु धनमासिञ्च। यतः। शवसानात्=ज्ञानविज्ञानमहाबलदायकात्। पुनः−शतमूतेः= शतमनन्ता ऊतयो रक्षाः सहायता यस्य स शतमूतिः। अनन्तसाहाय्यप्रदाता। “अत्र मागमो वैदिकः” तस्मादीश्वरात्। यशस्तरम्=अधिकं यशस्विनम्। नघ=नह्येव। विद्म=जानीमः। हे उपासक ! तदाश्रयेणैव ज्ञानवान् बलवान् यशस्वी च भविष्यसीत्यवधार्य्य तमेवोपधाव ॥२२॥
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ARYAMUNI

अथ यज्ञागतस्य कर्मयोगिनः सत्क्रिया कथ्यते।

Word-Meaning: - हे जिज्ञासो ! (कण्वमन्तं) विद्वद्भिर्युक्तं (तु) शीघ्रं (आ, सिञ्च) अभिषेकादिनाऽर्चय (शवसानात्) बलयुक्तात् (शतमूतेः) विविधां रक्षां कर्तुं समर्थात् (यशस्तरं) यशस्वितरमन्यं (न, घ, विद्म) नैव जानीमः ॥२२॥