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नृभि॑र्धू॒तः सु॒तो अश्नै॒रव्यो॒ वारै॒: परि॑पूतः । अश्वो॒ न नि॒क्तो न॒दीषु॑ ॥

English Transliteration

nṛbhir dhūtaḥ suto aśnair avyo vāraiḥ paripūtaḥ | aśvo na nikto nadīṣu ||

Pad Path

नृऽभिः॑ । धू॒तः । सु॒तः । अश्नैः॑ । अव्यः॑ । वारैः॑ । परि॑ऽपूतः । अश्वः॑ । न । नि॒क्तः । न॒दीषु॑ ॥ ८.२.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:17» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

मानसिक कर्म भी उसी को समर्पित करे।

Word-Meaning: - केवल ईश्वरप्रदत्त वस्तु ही उसे समर्पणीय नहीं है, किन्तु मनुष्य जो कुछ शुभकर्म करे, उसे भी उसी की इच्छा पर छोड़ दे। फलाकाङ्क्षी होकर कर्मानुष्ठान न करे। यह शिक्षा इस ऋचा के द्वारा देते हैं। यथा−(अश्नैः१) परमेश्वरप्रदत्तभोजी (वारैः२) परदुःखनिवारक (नृभिः३) नायक पुरुषों से (धूतः) संस्कृत अतएव (परिपूतः) पवित्र और अतएव (अव्यः४) रक्षक जो (सुतः) परिष्कृत मानसिक यज्ञ है, वह भी परमगुरु के निकट समर्पणीय है। शुद्धता में दृष्टान्त देते हैं (नदीषु) नदी के जल में (निक्तः) स्नात धौत हुए (अश्वः+न५) अश्व के समान ॥२॥
Connotation: - वेदों और विद्वानों के द्वारा शुभ और पवित्र कर्म अच्छे प्रकार समझ कर उनके अनुष्ठान में मनुष्य लगे रहें ॥२॥
Footnote: १−अश्न−अश भोजने। भोजनार्थक अश धातु से अश्न बनता है। कृपा कर जो कुछ परमेश्वर ने दिया है, उसी को खानेवाला अर्थात् अन्याय से परद्रव्य की आकाङ्क्षा न करनेवाला। २−वार−वारयन्ति निवारयन्ति। जो परदुःख के निवारण में लगे रहते हैं। ३−नृ−ना मनुष्य, ना यह नाम मनुष्य का है, परन्तु इसका धात्वर्थ नायक=नेता होता है। ४−अव्य−अवति−रक्षति जो रक्षा करता है। ५−अश्व इव−अगाध नदी जल में स्नान करने से अश्व के जैसे सर्व मल देह से छूट कर नीचे गिर पड़ते हैं, तद्वत् जो-जो कर्म हम मनुष्य करें, वह शुद्ध पवित्र हो, उसमें किञ्चित् भी मिथ्या का योग न हो। बहुत आदमी अशुद्ध और अन्याययुक्त कर्म करके उसके संशोधन के लिये अभीष्ट देवता की पूजा और आराधना करते हैं, परन्तु यह अनुचित और सर्वथा हेय है ॥२॥
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ARYAMUNI

अब सोमरस का महत्त्व वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (नृभिः, धूतः) उक्त रस नेताओं से शोधित (सुतः) सम्यक् संस्कृत (अश्नैः, अव्यः) व्यापक बननेवाले वीरों का रक्षणीय (वारैः) वरणीय=विश्वसनीय पुरुषों द्वारा (परिपूतः) सर्वथा परीक्षित (नदीषु) जलाधारों में (निक्तः) उत्पन्न किये हुए (अश्वः, न) विद्युत् के समान शक्तिप्रद है ॥२॥
Connotation: - यह सोमरस, जो विद्वान् वैद्यों द्वारा शोधकर तैयार किया जाता है, वह युद्धविशारद नेताओं का रक्षक होता है अर्थात् उसके पान करने से शरीर में विचित्रबल तथा ऐसी फुरती आ जाती है कि वह शत्रु पर अवश्य विजय प्राप्त करते हैं अर्थात् उक्त रसपान करने पर शूरवीर को विद्युत् के समान तेजस्वी और ओजस्वी बना देता है ॥२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

मानसिककर्माण्यपि तस्मै समर्पणीयानि।

Word-Meaning: - नहि परमात्मने तदीयमेवान्नं समर्पणीयं किन्तु मनुष्यैर्यत् किमपि शुभकर्म क्रियते तत् सर्वमेव तस्मायेव प्रदातव्यमित्यनया शिक्षते। यथा−अश्नैः= परमेश्वरप्रदत्तमश्नन्ति ये त अश्नाः=यज्ञशिष्टाशिनो यत्किमपीशेन प्रदत्तं तेनैव तुष्टाः। नान्यायेन परद्रव्यैषिणः। तैः। पुनः। वारैः=वारयन्ति निवारयन्ति परदुःखानि ते वाराः तैरितरक्लेशहारकैः। ईदृशैः। नृभिः=नेतृभिर्जनैः। धूतः=अवधूतः=आधावनेन संस्कृतः। अतएव परिपूतः=पवित्रीकृतः। अतएव अव्यः=अवति रक्षतीत्यव्यो रक्षकः। सुतः=परिष्कृतो यः खलु मानसिको यज्ञोऽस्ति। सोऽपि तस्मायेव समर्पणीयः। आधवने दृष्टान्तः−नदीषु निक्तः=स्नातः प्रक्षालितः। अश्वो न=अश्व इव ॥२॥
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ARYAMUNI

अथ सोमादिरसस्य महत्त्वं वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (नृभिः, धूतः) यो रसः नेतृभिः शोधितः (सुतः) साधुसंस्कृतः (अश्नैः, अव्यः) व्यापनशीलैर्योद्धृभिः रक्षणीयः (वारैः) वरणीयैः विश्वसनीयैः (परिपूतः) सर्वथा परीक्षितः (नदीषु) जलाधारेषु (निक्तः) आविर्भावितः (अश्वः, न) विद्युदिव शक्तिप्रदश्चास्ति ॥२॥