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ओ षु प्र या॑हि॒ वाजे॑भि॒र्मा हृ॑णीथा अ॒भ्य१॒॑स्मान् । म॒हाँ इ॑व॒ युव॑जानिः ॥

English Transliteration

o ṣu pra yāhi vājebhir mā hṛṇīthā abhy asmān | mahām̐ iva yuvajāniḥ ||

Pad Path

ओ इति॑ । सु । प्र । या॒हि॒ । वाजे॑भिः । मा । हृ॒णी॒थाः॒ । अ॒भि । अ॒स्मान् । म॒हान्ऽइ॑व । युव॑ऽजानिः ॥ ८.२.१९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:19 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:19


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SHIV SHANKAR SHARMA

विज्ञान दो, यह इससे प्रार्थना की जाती है।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (वाजेभिः) भक्तजनों में बाँटने योग्य विविध विज्ञानों के साथ तू (अस्मान्+अभि) हमारी ओर (सु) अच्छे प्रकार (प्र) निश्चितरूप से (ओ+याहि) अवश्य आ जा। (मा+हृणीथाः) क्रोध या लज्जा मत कर। इसमें दृष्टान्त देते हैं। (इव) जैसे (युवजानिः१) जिसकी पत्नी युवति है, वह पुरुष (महान्) महान् भी हो, तो भी अपनी युवति स्त्री के ऊपर न क्रोध करता और न उससे लज्जा ही रखता है ॥१९॥
Connotation: - यदि हम उपासक कुकर्मों में न फंसें, तो वह कदापि क्रुद्ध न होगा। सदा उसको मन में रख कर्मों में प्रवृत्त होओ ॥१९॥
Footnote: १−महानिव युवजानिः। ऋग्वेद में इस प्रकार की उपमाएँ बहुत आती हैं। १−युवशेव कन्यनाम् ॥ ऋ० ८।३५।५ ॥ जैसे युवा पुरुष कन्याओं के वचन ध्यान से सुनते हैं। इससे यह शिक्षा दी जाती है कि अल्पवयस्का कन्या से कदापि पुरुष विवाह न करे, क्योंकि युवति स्त्रियाँ ही अपने पति को दुर्व्यसन से रोकतीं, अपने वश में रखतीं और उत्तम सन्तान पैदा कर सकती हैं। वेद में कहा गया है−तमस्मेरा युवतयो युवानं मर्मृज्यमानाः परि यन्त्यापाः ॥ ऋ० २।३५।४ ॥ (अस्मेराः) हंसती हुई प्रसन्ना और (आपः) शीतल जल के समान (युवतयः) युवति स्त्रियाँ (युवानम्) अपने युवा स्वामी को (मर्मृज्यमानाः) अलङ्कारों, सुभाषितों और सदाचारों से अत्यन्त भूषित करती हुई (तम्) उस पति को (परियन्ति) शीतल करती हैं। पुनः−जाया पतिं वहति वग्नुना सुमत्पुंस इद्भद्रो वहतुः परिष्कृतः ॥ १०।३२।३ ॥ (जाया) पतिपरायणा स्त्री (पतिम्) अपने स्वामी को (सुमत्) मङ्ललमय और (वग्नुना) मधुर भाषण से (वहति) उत्तम मार्ग में ले जाती है (वहतुः) कन्या को जो धन दिया जाता है, उसे वहतु कहते हैं। (भद्रः) अच्छा और (परिष्कृतः) शुद्ध जो (वहतुः) जौतुक है, वह (पुंसः) पति का ही भाग है। इत्यादि ॥१९॥
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ARYAMUNI

अब कर्मयोगी के लिये आह्वान कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे कर्मयोगिन् ! (वाजेभिः) अपने बलों के सहित (अस्मान्, अभि) हमारे अभिमुख (सु) शोभन रीति से (प्र, उ) अवश्य (आयाहि) आवें (महान्, युवजानिः, इव) जैसे दीर्घावस्थापन्न पुरुष युवती स्त्री को उद्वाहित करके लज्जित होता है, इस प्रकार (मा, हृणीथाः) लज्जित मत हो ॥१९॥
Connotation: - राजलक्ष्मी, जो सदा युवति है, उसका पति वयोवृद्ध=हतपुरुषार्थ तथा जीर्णावयवोंवाला पुरुष कदापि नहीं हो सकता, या यों कहो कि जिस प्रकार युवति स्त्री का पति वृद्ध हो, तो वह पुरुष सभा, समाज तथा सदाचार के नियमों से लज्जित होकर अपना शिर ऊँचा नहीं कर सकता, इसी प्रकार जो पुरुष हतोत्साह तथा शूरतादि गुणों से रहित है, वह राज्यश्रीरूप युवति का पति बनने योग्य नहीं होता। इस मन्त्र में वृद्धविवाह तथा हतोत्साह पुरुष के लिये राजलक्ष्मी की प्राप्ति दुर्घट कथन की है अर्थात् युवति स्त्री के दृष्टान्त से इस बात को बोधन किया है कि शूरवीर बनने के लिये सदा युवावस्थापन्न शौर्य्यादि भावों की आवश्यकता है ॥१९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

विज्ञानं देहीत्यनया प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! वाजेभिः=प्रदातव्यैर्ज्ञानैः सह। अस्मान् अभि=अस्मान् भक्तजनान् अभिलक्ष्य। सु=सुष्ठु। प्र=प्रकर्षेण। ओ याहि=आ उ याहि। आयाहि एव=आगच्छैव। मा हृणीथाः=मा क्रुध्य। हृणीयतिः क्रुध्यतिकर्मा। यद्वा। मा लज्जां प्राप्नुहि। हृणीङ्लज्जायामिति कण्ड्वादौ पठ्यते। अत्र दृष्टान्तः। महानिव युवजानिः=युवतिर्जाया यस्य स युवजानिः। जायाया निङिति समासान्तो निङादेशः। ईदृशो महान् गुणैरधिकोऽपि स्वजायामुद्दिश्य न कुप्यति न च लज्जते ॥१९॥
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ARYAMUNI

अथ कर्मयोगिण आह्वानं कथ्यते।

Word-Meaning: - हे कर्मयोगिन् ! (वाजेभिः) बलैः सह (अस्मान्, अभि) अस्मदभिमुखं (सु) सुष्ठु (प्र, उ) प्रकर्षेण (आयाहि) आगच्छ (मा, हृणीथाः) मा लज्जस्व (महान्, युवजानिः, इव) यथा दीर्घावस्थापन्नो युवतिं जायामुदूढवान् लज्जते तद्वत् (मा, हृणीथाः) मा लज्जिष्ठाः ॥१९॥