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इ॒च्छन्ति॑ दे॒वाः सु॒न्वन्तं॒ न स्वप्ना॑य स्पृहयन्ति । यन्ति॑ प्र॒माद॒मत॑न्द्राः ॥

English Transliteration

icchanti devāḥ sunvantaṁ na svapnāya spṛhayanti | yanti pramādam atandrāḥ ||

Pad Path

इ॒च्छन्ति॑ । दे॒वाः । सु॒न्वन्त॑म् । न । स्वप्ना॑य । स्पृ॒ह॒य॒न्ति॒ । यन्ति॑ । प्र॒ऽमाद॑म् । अत॑न्द्राः ॥ ८.२.१८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:2» Mantra:18 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:18


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SHIV SHANKAR SHARMA

आलस्य को निवारण करती हुई श्रुति कहती है।

Word-Meaning: - (देवाः) विद्वान् जन (सुन्वन्तम्) शुभकर्मों में आसक्त जन की (इच्छन्ति) इच्छा करते हैं। (स्वप्नाय) स्वप्नशील आलसी पुरुष की (न स्पृहयन्ति) स्पृहा=इच्छा नहीं करते हैं। क्योंकि (अतन्द्राः) आलस्यरहित पुरुष ही (प्रमादम्) परम आनन्द को (यन्ति) पाते हैं ॥१८॥
Connotation: - जैसे विद्वान् आलसी पुरुष को नहीं चाहते हैं, तद्वत् सर्वहितकारी पुरुषों को उचित है कि वे उत्तमोत्तम कर्म करके उपमेय बनने की चेष्टा करें ॥१८॥
Footnote: आलस्य कदापि कर्त्तव्य नहीं, यह शिक्षा इससे दी जाती है। आलस्य मृत्यु है और उद्योग जीवन है। वेद में कहा गया है कि आलस्यरहित युवती स्त्रियाँ ही अच्छा सन्तान पैदा कर सकती है। यथा−दशेमं त्वष्टुर्जनयन्त गर्भमतन्द्रासो युवतयो विभृत्रम् ॥ ऋ० १।९५।२ ॥ जो (दश) ये दशों दिशाएँ (त्वष्टुः) सूर्य्यरूप पति से (विभृत्रम्) धारणपोषणकर्ता (इमम्) इस प्रत्यक्ष (गर्भम्) मेघरूप गर्भ को (जनयन्त) पैदा करती हैं। तद्वत् (अतन्द्रासः) निरालस्य (युवतयः) युवती स्त्रियाँ जगत्पोषक गर्भ अर्थात् सन्तान को जनती हैं ॥१८॥
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ARYAMUNI

अब उद्योगी पुरुष के लिये निरालस्य से परमानन्द की प्राप्ति कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (देवाः) दिव्यकर्मकर्त्ता योगीजन (सुन्वन्तं) क्रियाओं में तत्पर मनुष्य को (इच्छन्ति) चाहते हैं (स्वप्नाय) आलस्य को (न) नहीं (स्पृहयन्ति) चाहते (अतन्द्राः) निरालस होकर (प्रमादं) परमानन्द को (यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥१८॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि उत्तमोत्तम आविष्कारों में तत्पर कर्मयोगी लोग निरालसी क्रियाओं में तत्पर पुरुष को विविध रचनात्मक कामों में प्रवृत्त करते हैं अर्थात् उद्योगी पुरुष को अपने उपदेशों द्वारा कलाकौशलादि अनेकविध कामों को सिखलाते हैं और ऐसा पुरुष जो आलस्य को त्यागकर निरन्तर उद्योग में प्रवृत्त रहता है, वही सुख भोगता तथा वही परमानन्द को प्राप्त होता है और आलसी व्यसनों में प्रवृत्त हुआ निरन्तर अपनी अवनति करता तथा सुख, सम्पत्ति और आनन्द से सदा वञ्चित रहता है, इसलिये ऐश्वर्य्य और आनन्द की कामनावाले पुरुष को निरन्तर उद्योगी होना चाहिये ॥१८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

आलस्यं निवारयन्ती श्रुतिराह।

Word-Meaning: - देवाः=विद्वांसः। सुन्वन्तम्=शुभकर्माणि कुर्वन्तं जनम्। इच्छन्ति। स्वप्नाय=स्वपितीति स्वप्नः स्वप्नकारी शयनकारी। स्वप्नशीलाय पुरुषाय। न स्पृहयन्ति= नेच्छन्ति। यद्वा। जनस्य कस्यचिदपि स्वप्नाय स्वप्नावस्थायै न स्पृहयन्ति। विद्वांसः खलु सर्वदा सर्वजनं प्रबुद्धमिच्छन्ति। सर्वः खलु आलस्यरहितो भवत्विति तेषां स्पृहा “स्पृहेरीप्सितः” इति कर्मणि चतुर्थी। स्पृह ईप्सायां चुरादिरदन्तः। यत एवम्=अतः कारणात्। अतन्द्राः=तन्द्रा आलस्यं न विद्यते येषां ते अतन्द्रा आलस्यरहिता जनाः। प्रमादं=प्रकृष्टं मादमानन्दम्। यन्ति=प्राप्नुवन्ति। विचित्रो हि वैदिकः प्रयोगः। स लौकिकसाम्यं नाभ्युपैति। लोके प्रमादशब्दोऽनवधाने। वेदे आनन्दातिशये क्वचित् ॥१८॥
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ARYAMUNI

अथ उद्योगिभिरनालस्यैरेव परमानन्दः प्राप्यते इति कथ्यते।

Word-Meaning: - (देवाः) दिव्याः कर्मयोगिनः (सुन्वन्तं) क्रियासिद्धिकर्तारं (इच्छन्ति) वाञ्छन्ति (स्वप्नाय) आलस्यं (न) नहि (स्पृहयन्ति) वाञ्छन्ति (अतन्द्राः) निरालस्याः सन्तः (प्रमादं) परमानन्दं (यन्ति) प्राप्नुवन्ति ॥१८॥