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यस्य॑ ते अग्ने अ॒न्ये अ॒ग्नय॑ उप॒क्षितो॑ व॒या इ॑व । विपो॒ न द्यु॒म्ना नि यु॑वे॒ जना॑नां॒ तव॑ क्ष॒त्राणि॑ व॒र्धय॑न् ॥

English Transliteration

yasya te agne anye agnaya upakṣito vayā iva | vipo na dyumnā ni yuve janānāṁ tava kṣatrāṇi vardhayan ||

Pad Path

यस्य॑ । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । अ॒न्ये । अ॒ग्नयः॑ । उ॒प॒ऽक्षितः॑ । व॒याःऽइ॑व । विपः॑ । न । द्यु॒म्ना । नि । यु॒वे॒ । जना॑नाम् । तव॑ । क्ष॒त्राणि॑ । व॒र्धय॑न् ॥ ८.१९.३३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:19» Mantra:33 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:35» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:33


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे सर्वगत ब्रह्म ! जो (अन्ये+अग्नयः) अन्य सूर्य्य, अग्नि, विद्युदादि अग्नि हैं, वे (यस्य) जिस (ते) तेरे (उपक्षितः) आश्रित हैं, उस तुझको मैं गाता हूँ। यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(वयाः+इव) जैसे शाखाएँ स्वमूल वृक्ष के आश्रित हैं, तद्वत्। पुनः। हे ब्रह्मन् ! (तव) तेरे (क्षत्राणि) बलों या यशों को (वर्धयन्) स्तुति से बढ़ाता हुआ मैं (विपः+इव) अन्यान्य स्तुतिपाठक के समान (जनानाम्) मनुष्यों के मध्य (द्युम्ना) सुखों और यशों को (नि+युवे) अच्छे प्रकार पाता हूँ। यह आपकी महती कृपा है ॥३३॥
Connotation: - ये सूर्य्यादि अग्नि भी उसी महाग्नि ईश्वर से तेज और प्रभा पा रहे हैं, उसी की कीर्ति गाते हुए कविगण सुखी होते हैं ॥३३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (यस्य, ते) जिस आपके (अन्ये, अग्नयः) अन्य भौतिक आहवनीयादि अग्नि (वया इव) शाखाओं के समान (उपक्षितः) समीप में वसते हैं, उनके द्वारा (तव, क्षत्राणि, वर्धयन्) आपके ऐश्वर्य को बढ़ाते हुए हम (जनानाम्) मनुष्यों के मध्य में (विपः, न) अन्य स्तोता के समान (द्युम्ना, नियुवे) यश को प्राप्त करें ॥३३॥
Connotation: - संसार में अनेक प्रकार के सूर्यादि तेजोमय आधार हैं, परन्तु परमात्मा उन सबों का शक्तिदाता तथा स्वयं परमतेजोमय है। विज्ञानियों को चाहिये कि वे उन सब तेजों से अनेक विज्ञानों को प्रकाशित करके परमात्मा के यश को बढ़ाते हुए स्वयं यशस्वी बनें ॥३३॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्त्तते।

Word-Meaning: - हे अग्ने ! ये अन्ये अग्नयः=अग्निसूर्य्यविद्युदादयः सन्ति। ते सर्वे। यस्य। ते=तव। उपक्षितः=आश्रिताः सन्ति। तं त्वां गायामि। अत्र दृष्टान्तः। वया इव=यथा शाखाः स्वमूलवृक्षे आश्रिता भवन्ति तद्वत्। पुनः। हे ब्रह्मन् ! तव क्षत्राणि=बलानि यशांसि च। स्तुत्या वर्धयन्नहम्। जनानां मध्ये। विपो न=अन्ये स्तोतार इव। विप इति स्तोतृनाम। द्युम्ना=द्योतमानानि सुखानि यशांसि च। नि युवे=नितरां प्राप्नोमि ॥३३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे परमात्मन् ! (यस्य, ते) यस्य तव (अन्ये, अग्नयः) इतरे अग्नयः आहवनीयादयः (वया, इव) शाखा इव (उपक्षितः) उपनिवसन्ति (तव, क्षत्राणि, वर्धयन्) तव बलानि वर्धयन् अहम् (जनानाम्) मनुष्याणां मध्ये (विपः, न) अन्यस्तोतेव (द्युम्ना, नियुवे) यशांसि प्राप्नुयाम् ॥३३॥