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ते घेद॑ग्ने स्वा॒ध्यो॒३॒॑ ये त्वा॑ विप्र निदधि॒रे नृ॒चक्ष॑सम् । विप्रा॑सो देव सु॒क्रतु॑म् ॥

English Transliteration

te ghed agne svādhyo ye tvā vipra nidadhire nṛcakṣasam | viprāso deva sukratum ||

Pad Path

ते । घ॒ । अ॒ग्ने॒ । सु॒ऽआ॒ध्यः॑ । ये । त्वा॒ । वि॒प्र॒ । नि॒ऽद॒धि॒रे । नृ॒ऽचक्ष॑सम् । विप्रा॑सः । दे॒व॒ । सु॒ऽक्रतु॑म् ॥ ८.१९.१७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:19» Mantra:17 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:17


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसकी स्तुति दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे सर्वगत ! (विप्र) हे सर्वत्र परिपूर्ण ! (देव) परमदेव ! (ते) वे (घ+इत्) ही उपासक निश्चय (स्वाध्यः) अच्छे प्रकार ध्यान करनेवाले हैं और (विप्रासः) वे ही बुद्धिमान् हैं, जो (नृचक्षसम्) मनुष्यों के सकल कर्मों को देखनेवाले और उपदेष्टा और (सुक्रतुम्) जगत् के कर्त्ता-धर्त्ता (त्वा) तुझको (नि+दधिरे) योगावस्थित हो हृदय में रखते हैं ॥१७॥
Connotation: - परमात्मा को हृदयप्रदेश में स्थापित करे, अग्निहोत्रादि शुभ कर्म सदा किया करे, इत्यादि वाक्यों का आशय यही है कि उसकी आज्ञा का सदा पालन करे, कभी अनवहित लुब्ध और वशीभूत होकर भी उसका निरादर न करे। उसकी उपासना तब ही समझी जा सकती है, जब उपासक भी वैसा ही हो। शुद्धता, पवित्रता और उदारत्वादि ईश्वरीय गुण अपने में धारण कर प्रतिदिन बढ़ाता जाए ॥१७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विप्र) हे ज्ञान से पूरित (देव) द्योतमान (अग्ने) परमात्मन् ! (ते, घ, इत्) वे ही निश्चय (स्वाध्यः) शोभनध्यानवाले होते हैं, (ये, विप्रासः) जो विद्वान् (नृचक्षसम्) सब मनुष्यों के द्रष्टा (सुक्रतुम्) शुभकर्मवाले (त्वा) आपको (निदधिरे) अन्तःकरण में निवासित करते हैं ॥१७॥
Connotation: - जो परमात्मा स्वज्ञानशक्ति से सर्वत्र पूरित है, जो सूर्यादिकों में प्रविष्ट होकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित कर रहा है, जिसके कर्म सबसे अधिक तथा दुर्ज्ञेय हैं, उसी का शुद्धचित्त से ध्यान करके मनुष्य दीर्घकर्मों में समर्थ हो सकता है, अन्यथा नहीं ॥१७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तदीयस्तुतिं दर्शयति।

Word-Meaning: - हे अग्ने=सर्वगत परमात्मन् ! हे विप्र=विशेषेण परिपूर्ण देवेश ! इद्=एवार्थः। घ=चार्थः। ते घेत्=त एव मनुष्याः। स्वाध्यः=सुष्ठु आध्यः=आसमन्ताद् ध्यानकर्तारः। त एव विप्रासः=मेधाविनो बुद्धिमन्तः। ये उपासकाः। नृचक्षसम्=नृणां मनुष्याणां चक्षसम्=द्रष्टारमुपदेष्टारञ्च। सुक्रतुम्=सुकर्त्तारम्। त्वा=त्वां हृदये। निदधिरे=नितरां दधति ॥१७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विप्र) सर्वज्ञ (देव) द्योतमान (अग्ने) परमात्मन् ! (ते, घ, इत्) त एव हि (स्वाध्यः) सुध्यानवन्तो भवन्ति (ये, विप्रासः) ये विद्वांसः (नृचक्षसम्) मनुष्याणां द्रष्टारम् (सुक्रतुम्) शोभनकर्माणम् (त्वा, निदधिरे) त्वामन्तःकरणे निदधति ॥१७॥