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यस्य॒ त्वमू॒र्ध्वो अ॑ध्व॒राय॒ तिष्ठ॑सि क्ष॒यद्वी॑र॒: स सा॑धते । सो अर्व॑द्भि॒: सनि॑ता॒ स वि॑प॒न्युभि॒: स शूरै॒: सनि॑ता कृ॒तम् ॥

English Transliteration

yasya tvam ūrdhvo adhvarāya tiṣṭhasi kṣayadvīraḥ sa sādhate | so arvadbhiḥ sanitā sa vipanyubhiḥ sa śūraiḥ sanitā kṛtam ||

Pad Path

यस्य॑ । त्वम् । ऊ॒र्ध्वः । अ॒ध्व॒राय॑ । तिष्ठ॑सि । क्ष॒यत्ऽवी॑रः । सः । सा॒ध॒ते॒ । सः । अर्व॑त्ऽभिः । सनि॑ता । सः । वि॒प॒न्यु॒ऽभिः॒ । सः । शूरैः॑ । सनि॑ता । कृ॒तम् ॥ ८.१९.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:19» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

उसकी प्रशंसा दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे देव ! (यस्य) जिस यजमान के (अध्वराय) यज्ञ के लिये (त्वम्) तू स्वयं (ऊर्ध्वः+तिष्ठसि) उद्योगी होता है। (सः) वह (क्षयद्वीरः) चिरंजीवी वीर पुत्रादिकों से युक्त होकर (साधते) संसार के सब कर्तव्य सिद्ध करता है (सः) वह (अर्वद्भिः) घोड़ों से (सनिता) युक्त होता है (सः) वह (विपन्युभिः) विद्वानों से युक्त होता है (सः) वह (शूरैः) शूरों से (सनिता) युक्त होता है। इन अश्वादिकों से युक्त होकर (कृतम्) संसार के सब कर्म को सिद्ध करता है ॥१०॥
Connotation: - उसकी कृपा से मनुष्य सर्व प्रकार के सुखों से युक्त होता है। प्रतिदिन उसकी वृद्धि और उसका अभ्युदय होता है। वह जगत् में माननीय और गणनीय होता है ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वः, त्वम्) सर्वोपरि वर्तमान आप (यस्य, अध्वराय) जिसके यज्ञसाधन के लिये (तिष्ठसि) उद्यत होते हैं (सः) वह (क्षयद्वीरः) शत्रुक्षयकारक वीरोंवाला होकर (साधते) इष्टकार्यों को सिद्ध करता है (सः, अर्वद्भिः) वह अश्वों से (कृतम्) साधनयोग्य कर्मों को (सः, विपन्युभिः) वह विद्वानों द्वारा साधनयोग्य कर्मों को (सनिता) उपलब्ध करता है (सः, शूरैः) वह शूरों द्वारा साध्यकर्म को (सनिता) लब्ध करता है ॥१०॥
Connotation: - जो पुरुष परमात्माश्रित होकर अपने पौरुष से यज्ञ करने में प्रवृत्त होता है, उसको परमात्मा सहायक होकर गौ, अश्वादि ऐश्वर्य, विद्वानों का सङ्ग, शूरों द्वारा सुरक्षा आदि अनेक इष्ट पदार्थों का लाभ कराके शत्रुओं के अभिभव में समर्थ बनाता है ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

तमेव प्रशंसति।

Word-Meaning: - हे देव ! यस्य=यजमानस्य। अध्वराय=यज्ञाय। त्वम्=स्वयमेव। ऊर्ध्वः=उद्योगी सन् तिष्ठसि। स क्षयद्वीरः=क्षयन्तो निवसन्तश्चिरंजीविनो वीराः पुत्रादयो यस्य सः। दीर्घजीविभिर्वीरैः पुत्रादिभिः सः। स सर्वं कार्य्यं साधते=साधयति। सः। अर्वद्भिरश्वैः सह। सनिता=संमिलितो भवति। विपन्युभिर्विद्वद्भिर्युक्तो भवति। स शूरैः सह सनिता युक्तो भवति। एतैरश्वादिभिर्युक्तो भूत्वा कृतम्=सर्वं कर्म साधयतीत्यर्थः ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वः, त्वम्) सर्वोपरि वर्तमानस्त्वम् (यस्य, अध्वराय) यस्य यागं साधयितुम् (तिष्ठसि) प्रक्रमसे (सः) स जनः (क्षयद्वीरः) शत्रुनाशकवीरयुक्तः सन् (साधते) इष्टं साध्नोति (सः, अर्वद्भिः) सोऽश्वैः (कृतं) साधितम् (सः, विपन्युभिः) स विद्वद्भिश्च साधितम् (सनिता) लब्धा भवति (सः, शूरैः) स शूरैः कृतम् (सनिता) संभक्ता भवति ॥१०॥