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उ॒त त्या दैव्या॑ भि॒षजा॒ शं न॑: करतो अ॒श्विना॑ । यु॒यु॒याता॑मि॒तो रपो॒ अप॒ स्रिध॑: ॥

English Transliteration

uta tyā daivyā bhiṣajā śaṁ naḥ karato aśvinā | yuyuyātām ito rapo apa sridhaḥ ||

Pad Path

उ॒त । त्या । दैव्या॑ । भि॒षजा॑ । शम् । नः॒ । क॒र॒तः॑ । अ॒श्विना॑ । यु॒यु॒याता॑म् । इ॒तः । रपः॑ । अप॑ । स्रिधः॑ ॥ ८.१८.८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:18» Mantra:8 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:8


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SHIV SHANKAR SHARMA

राजा आदि प्रजाओं को सदा बचावें।

Word-Meaning: - (उत) और (त्या) वे (दैव्या) दिव्यगुणसम्पन्न और देवोपकारी (भिषजा) वैद्य (अश्विना) अश्वयुक्त राजा अध्यापक आदि (नः) हमारे (शम्) रोगों का शमन करें। और (इतः) हम लोगों से (रपः) पाप दुष्टाचार आदिकों को (युयुयाताम्) दूर करें। तथा (स्रिधः) बाधक विघ्नों और शत्रुओं को (अप) दूर करें ॥८॥
Connotation: - वैद्य राजा अमात्य और विद्वान् आदिकों को उचित है कि मनुष्य समाज से रोग, अज्ञान, पाप और शत्रुता आदिकों को दूर किया करें। तब ही संसार सुखी रह सकता है ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (उत) और (त्या) वे (दैव्या) देवों में रहनेवाले (भिषजा) शारीरिक तथा बौद्धिक दोनों प्रकार के रोग को दूर करनेवाले दो प्रकार के वैद्य (अश्विना) अपने ज्ञान और क्रिया द्वारा व्यापक (नः, शम्, करतः) हमारे रोगों का शमन करें (इतः) इस निवासस्थान से (रपः) दुश्चरित्र को (युयुयाताम्) अपनयन करें (स्रिधः) विघ्नों को (अप) अपसारित करें ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि जो शारीरिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार के वैद्य ह, वे अपने ज्ञान तथा क्रिया द्वारा हमारे उक्त रोगों को शमन करें अर्थात् आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक इन तीनों प्रकार के दुःखों को निवृत्त करके अभ्युदय प्राप्त करावें और सब विघ्नों को शान्त करते हुए हमें आध्यात्मिकता के उपदेश द्वारा हमारे दुश्चरित्र को निवृत्त करें ॥८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

राजादिभिः प्रजा रक्षणीया।

Word-Meaning: - उत=अपि च। त्या=तौ। दैव्या=दैव्यौ दिव्यगुणसम्पन्नौ देवानामुपकारिणौ। भिषजा=वैद्यौ। अश्विना। नोऽस्माकम्। शम्=रोगाणां शमनम्। करतः=कुरुताम्। तथा। इतोऽस्मत्तः। रपः=पापानि। युयुयाताम्=पृथक्कुरुताम्। स्रिधः=बाधकान् शत्रून् विघ्नांश्चापि। अपगमयताम् ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (उत) अथ (त्या) तौ (दैव्या) देवेषु भवौ (भिषजा) उभयविधवैद्यौ (अश्विना) व्याप्तिमन्ता (नः, शम्, करतः) अस्माकम् शान्तिं कुरुताम् (इतः) अस्मात् (रपः) पापम् (युयुयाताम्) अपनयेताम् (स्रिधः) विघ्नानि (अप) अपनयताम् ॥८॥