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ते हि पु॒त्रासो॒ अदि॑तेर्वि॒दुर्द्वेषां॑सि॒ योत॑वे । अं॒होश्चि॑दुरु॒चक्र॑योऽने॒हस॑: ॥

English Transliteration

te hi putrāso aditer vidur dveṣāṁsi yotave | aṁhoś cid urucakrayo nehasaḥ ||

Pad Path

ते । हि । पु॒त्रासः॑ । अदि॑तेः । वि॒दुः । द्वेषां॑सि । योत॑वे । अं॒होः । चि॒त् । उ॒रु॒ऽचक्र॑यः । अ॒ने॒हसः॑ ॥ ८.१८.५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:18» Mantra:5 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:5


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SHIV SHANKAR SHARMA

विद्वानों की प्रशंसा विधान करते हैं।

Word-Meaning: - (अदितेः) विमलबुद्धि के (ते+हि) वे सुप्रसिद्ध (पुत्रासः) पुत्र=आचार्य्य और पण्डितगण (द्वेषांसि) दुष्ट राक्षसादिकों को यद्वा द्वेषों और शत्रुता को समाज से (योतवे) पृथक् करना (विदुः) जानते हैं। तथा (उरुचक्रयः) महान् कार्य्य करनेवाले (अनेहसः) अहन्ता=रक्षक वे आचार्य्य (अंहोः+चित्) महापाप से भी हम लोगों को दूर करना जानते हैं। इस कारण उनकी आज्ञा में सब जन रहा करें, यह उपदेश है ॥५॥
Connotation: - आचार्य्य या विद्वद्वर्ग सदा जनता को नाना क्लेशों से बचाया करते हैं। अपने सुभाषण से लोगों को सन्मार्ग में लाके पापों से दूर करते हैं। अतः देश में ऐसे आचार्य्य और विद्वान् जैसे बढ़ें, वैसा उपाय सबको करना उचित है ॥५॥
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ARYAMUNI

अब विद्या की प्रकारान्तर से महिमा वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (ते, हि, अदितेः, पुत्रासः) विद्या के पुत्रसमान वे विद्वान् (द्वेषांसि) शत्रुओं से (अंहोः, चित्) और पाप से (योतवे) दूर करने को (विदुः) जानते हैं (उरुचक्रयः) अनेक कर्मोंवाले और (अनेहसः) रक्षण में समर्थ हैं ॥५॥
Connotation: - विद्यासम्पन्न=विद्या के पुत्रवत् विद्वान् पुरुष पापों और शत्रुओं से निवृत्त करना जानते हैं अर्थात् वे पुरुष के राग, द्वेष, काम तथा क्रोधादि वेगों को रोककर उनमें एकमात्र शान्ति स्थापन करते हैं, “यह विद्या का महत्त्व” है, अतएव सर्वोपरि शान्तिधारण करने के लिये पुरुष को चाहिये कि वे विद्वानों की सङ्गति से अपने को शान्त बनाएँ, जिससे सर्वप्रिय तथा सर्वमित्र हों ॥५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

विदुषां प्रशंसा विधीयते।

Word-Meaning: - अदितेः=विमलबुद्धेः। ते+हि=ते खलु प्रसिद्धाः। पुत्रासः=पुत्रा आचार्य्याः। द्वेषांसि=द्वेष्टॄणि राक्षसादीनि। यद्वा। पारस्परिकद्वेषान्। विदुः=जानन्ति। तथा। ते। उरुचक्रयः=उरूणां महतां कार्य्याणां चक्रयः=कर्त्तारः। पुनः। अनेहसोऽनाहन्तारो रक्षकास्ते। अंहोः+चित्=आगत्य हन्तुः पापादपि अस्मान्। योतवे=पृथक्कर्तुम्। जानन्ति। अतस्तेषामेषामाज्ञायां सर्वे जना वर्तन्तामित्युपदेशः ॥५॥
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ARYAMUNI

अथ विद्यायाः प्रकारान्तरेण महत्त्वमुपदिश्यते।

Word-Meaning: - (ते, हि, अदितेः, पुत्रासः) विद्यायाः पुत्रतुल्यास्ते विद्वांसः (द्वेषांसि) शत्रून् (अंहोः, चित्) पापाच्च (योतवे) पृथक्कर्तुम् (विदुः) जानन्ति (उरुचक्रयः) बहुकर्माणः (अनेहसः) रक्षकाश्च सन्ति ॥५॥