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अ॒ने॒हो मि॑त्रार्यमन्नृ॒वद्व॑रुण॒ शंस्य॑म् । त्रि॒वरू॑थं मरुतो यन्त नश्छ॒र्दिः ॥

English Transliteration

aneho mitrāryaman nṛvad varuṇa śaṁsyam | trivarūtham maruto yanta naś chardiḥ ||

Pad Path

अ॒ने॒हः । मि॒त्र॒ । अ॒र्य॒म॒न् । नृ॒ऽवत् । व॒रु॒ण॒ । शंस्य॑म् । त्रि॒ऽवरू॑थम् । म॒रु॒तः॒ । य॒न्त॒ । नः॒ । छ॒र्दिः ॥ ८.१८.२१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:18» Mantra:21 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:28» Mantra:6 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:21


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SHIV SHANKAR SHARMA

गृह के लिये प्रार्थना दिखाते हैं।

Word-Meaning: - (मित्र) हे ब्राह्मण ! (वरुण) हे क्षत्रिय ! (अर्यमन्) वैश्यश्रेष्ठ ! (मरुतः) हे इतरजनों ! (नः) हमको (अनेहः) अहिंसित (नृवत्) मनुष्ययुक्त (शंस्यम्) प्रशंसनीय (त्रिवरूथम्) त्रितापनिवारक यद्वा त्रिलोकस्थ पुरुषों से वरणीय (छर्दिः) ज्ञानभवन (यन्त) दीजिये ॥२१॥
Connotation: - निवास के लिये अच्छा निरुपद्रव भवन बनाना चाहिये ॥२१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मित्र) हे सब प्रजाओं के मित्रभूत नेता (अर्यमन्) हे ईश्वरज्ञान में तत्पर नेता (वरुण) हे विघ्ननिवारण में तत्पर नेता (मरुतः) हे योद्धाओं के अधिपति नेता ! (नः) आप सब हमारे लिये (अनेहः) हिंसकवर्जित (नृवत्) मनुष्यों से भरे हुए (शंस्यम्) सब मनुष्यों से प्रशंसा करने योग्य (त्रिवरूथम्) विविध कार्यसाधन के लिये तीन स्थानों में विभक्त (छर्दिः) गृह को (यन्त) दें ॥२१॥
Connotation: - हे सब प्रजाओं को मित्रता की दृष्टि से देखनेवाले, वेदविहित कर्मों में तत्पर रहनेवाले, प्रजाओं के दुःखनिवारण करने में तत्पर रहनेवाले और योद्धाओं के अधिपति=वेदविद्यासम्पन्न विद्वान् पुरुष, परोपकारपरायण नेता पुरुष, प्रशंसनीय अहिंसक पुरुषों से भरे हुए अर्थात् वेदविहित कर्म करनेवाले परिवार से परिपूर्ण उत्तम गृह प्रदान करें ॥२१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

गृहप्रार्थनां दर्शयति।

Word-Meaning: - हे मित्र=ब्राह्मण ! हे वरुण=क्षत्रिय ! हे अर्यमन्=वैश्यश्रेष्ठ ! हे मरुतः=समवेता इतरे जनाः। नोऽस्मभ्यम्। अनेहोऽहिंसितम्। नृवत्=नृभिर्मनुष्यैर्युक्तम्। शंस्यम्=प्रशंसनीयम्। त्रिवरूथम्=त्रितापनिवारकं त्रिलोकस्थैर्वरणीयं वा। छदिर्ज्ञानभवनम्। यन्त=यच्छत=दत्त ॥२१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (मित्र) हे सर्वमित्रभूत नेतः (अर्यमन्) हे ईश्वरोपासक (वरुण) हे विघ्नवारक (मरुतः) हे योद्धृनेतारः ! (नः) अस्मभ्यम् (अनेहः) अहिंसकम् (नृवत्) नृसंकुलम् (शंस्यम्) जनैः शंसनीयम् (त्रिवरूथम्) विविधकार्याय त्रिषु विभक्तम् (छर्दिः) गृहम् (यन्त) प्रयच्छत ॥२१॥