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इ॒दं ह॑ नू॒नमे॑षां सु॒म्नं भि॑क्षेत॒ मर्त्य॑: । आ॒दि॒त्याना॒मपू॑र्व्यं॒ सवी॑मनि ॥

English Transliteration

idaṁ ha nūnam eṣāṁ sumnam bhikṣeta martyaḥ | ādityānām apūrvyaṁ savīmani ||

Pad Path

इ॒दम् । ह॒ । नू॒नम् । ए॒षा॒म् । सु॒म्नम् । भि॒क्षे॒त॒ । मर्त्यः॑ । आ॒दि॒त्याना॑म् । अपू॑र्व्यम् । सवी॑मनि ॥ ८.१८.१

Rigveda » Mandal:8» Sukta:18» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:1


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SHIV SHANKAR SHARMA

किससे भिक्षा माँगे, यह दिखाते हैं।

Word-Meaning: - (आदित्या१नाम्+एषाम्) इन आचार्य्यों की (सवीमनि) प्रेरणा होने पर (मर्त्यः) ब्रह्मचारी और अन्यान्य जन भी (नूनम्) निश्चय ही (इदम्+ह) इस (अपूर्व्यम्) नूतन-२ (सुम्नम्) विज्ञानरूप महाधन को (भिक्षेत) माँगे ॥१॥
Connotation: - यहाँ प्रथम सदाचार की शिक्षा देते हैं कि जब-२ आचार्य या विद्वान् आज्ञा देवें, तब-२ उनसे विज्ञान की भिक्षा माँगे। यद्वा आदित्य=सूर्य्य, इस संसार में सूर्य्य से भी नाना सुख की प्राप्ति मनुष्य करे ॥१॥
Footnote: १−आदित्य=जो पदार्थों से परमार्थ को ग्रहण करें, वे आदित्य कहाते हैं अर्थात् विद्वान् आचार्य आदि। यद्वा आदित्य=सूर्य्य। क्योंकि वे पृथिवी से रस लेते हैं, इत्यादि अर्थ ऊहनीय हैं ॥१॥
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ARYAMUNI

अब इस सूक्त में विद्या की महिमा का वर्णन करते हुए प्रजाजनों को विद्याध्ययन करने का उपदेश कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (आदित्यानाम्) अदिति=अखण्डनीय विद्या से ऐश्वर्य्य को पाये हुए विद्वानों की (सवीमनि) प्रेरणा होने पर (मर्त्यः) मनुष्य (एषाम्, अपूर्व्यम्, सुम्नम्) इनके नूतन सुख को (नूनम्, ह, भिक्षेत) निश्चय ही याचना करे ॥१॥
Connotation: - जिन विद्वानों ने ब्रह्मचर्य्यादि व्रतों से अखण्डनीय=भ्रान्ति आदि दोषों से रहित विद्यासम्पादन करके ऐश्वर्य्य प्राप्त किया है, मनुष्य को चाहिये कि ऐसे विद्वानों का जिज्ञासु बनकर उनसे सद्गुणसम्पन्न होने की भिक्षारूप याचना करे ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

कं भिक्षेतेति दर्शयति।

Word-Meaning: - आदित्यानाम्=आददति=गृह्णन्ति ये ते आदित्याः। पदार्थेभ्यो ये परमात्मतत्त्वं गृह्णन्ति ते विद्वांस आचार्य्याश्च आदित्याः। यद्वा। अदितेः पुत्रा आदित्याः। अदितिः=अखण्डनीया सर्वव्यापिनी बुद्धिः। या च अखण्डस्वरूपेण सर्वत्र व्याप्ता प्रकृतिरस्ति सापि अदितिः। यत्र यत्र प्रकृतिस्तत्र तत्र बुद्धिः। बुद्धितत्त्वस्य न कुत्राप्यभावोऽस्तीति शास्त्रैरवगन्तव्यम्। तेषामेषामादित्याना- माचार्य्याणाम्। सवीमनि=प्रसवे=प्रेरणे सति। मर्त्यः=ब्रह्मचारी तदितरश्च। नूनमवश्यम्। इदं ह=अपूर्व्यम्=नवीनं नवीनम्। सुम्नम्=विज्ञानरूपं महाधनम्। तेषामेव समीपे भिक्षेत ॥१॥
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ARYAMUNI

अथास्मिन् सूक्ते विद्यामहत्त्वं वर्णयन् प्रजाजनाय विद्याध्ययनमुपदिश्यते।

Word-Meaning: - (आदित्यानाम्) अखण्डनीयविद्यया लब्धैश्वर्याणां विदुषां (सवीमनि) प्रेरणे सति (मर्त्यः) मनुष्यः (एषाम्, अपूर्व्यम्, सुम्नम्) एषां नूतनं सुखम् (नूनम्, ह, भिक्षेत) अवश्यमेव याचेत ॥१॥