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यस्ते॑ शृङ्गवृषो नपा॒त्प्रण॑पात्कुण्ड॒पाय्य॑: । न्य॑स्मिन्दध्र॒ आ मन॑: ॥

English Transliteration

yas te śṛṅgavṛṣo napāt praṇapāt kuṇḍapāyyaḥ | ny asmin dadhra ā manaḥ ||

Pad Path

यः । ते॒ । शृ॒ङ्ग॒ऽवृ॒षः॒ । न॒पा॒त् । प्रन॑पा॒द् इति॒ प्रऽन॑पात् । कु॒ण्ड॒ऽपाय्यः॑ । नि । अ॒स्मि॒न् । द॒ध्रे॒ । आ । मनः॑ ॥ ८.१७.१३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:17» Mantra:13 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:13


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः वही विषय आ रहा है।

Word-Meaning: - हे इन्द्र (यः+ते) जो तेरा सृष्ट (शृङ्गवृषः) यह महान् सूर्य्य है (अस्मिन्) इसमें तत्त्वविद् जन (मनः+नि+आ+दध्रे) मन स्थापित करते हैं। अर्थात् इसको आश्चर्य्यदृष्टि से देखते हैं क्योंकि यह (नपात्) निराधार आकाश में स्थापित रहने पर भी नहीं गिरता है, पुनः (प्रणपात्) अपने परिस्थित ग्रहों को कभी गिरने नहीं देता, किन्तु यह (कुण्डपाय्यः) उन पृथिव्यादि लोकों का अच्छे प्रकार पालन कर रहा है। ऐसा महान् अद्भुत यह सूर्य्य है ॥१३॥
Connotation: - यद्यपि इस संसार में एक-२ पदार्थ ही अद्भुत है तथापि यह सूर्य्य तो अत्यद्भुत वस्तु है, इसको देख-२ कर ऋषिगण चकित होते हैं। हे इन्द्र ! यह तेरी अद्भुत कीर्ति है ॥१३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शृङ्गवृषः, नपात्) हे स्वतेजोवर्धक उपासक के रक्षक योद्धा ! (यः, ते) जो आपका (प्रणपात्) प्ररक्षक (कुण्डपाय्यः) यज्ञविशेष है (अस्मिन्) इस कुण्डपाय्य नामक यज्ञ में (मनः) उपासक जन मन को (न्यादध्रे) लगाते हैं ॥१३॥
Connotation: - हे उपासकों के रक्षक तेजस्वी योद्धा ! आपका रक्षक जो “कुण्डपाय्य” यज्ञ* है, उस यज्ञ को याज्ञिक पुरुष बड़ी श्रद्धा तथा उत्साह से पूर्ण करते हैं, जिससे आपका बल वृद्धि को प्राप्त हो, आप सदा अजय हों अर्थात् कोई शत्रु आपको युद्ध में न जीत सके ॥१३॥ *कुण्ड के आकारविशेषवाले पात्रों से जिस यज्ञ में सोमपान किया जाता है, उसका नाम “कुण्डपाय्य” यज्ञ है ॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तदनुवर्त्तते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! यस्ते=तव सृष्टः। शृङ्गवृषः=सूर्य्योऽस्ति। शृङ्गैः किरणैर्वर्षतीति यः सः। अस्मिन्। तत्त्वविदो जनाः। मनः। आनिदध्रे=आनिदधति=स्थापयन्ति। आश्चर्यदृष्ट्या पश्यन्तीत्यर्थः। यतोऽयम्। नपात्=निराधारे स्थितोऽपि। न पततीत्यर्थः। पुनः। प्रणपात्=प्रकर्षेण न पातयिता। सर्वेषां ग्रहाणां रक्षितेत्यर्थः। पुनः। कुण्डपाय्यः=कुण्डान् पृथिव्यादिलोकान्। पाति=रक्षतीति कुण्डपाय्यः ॥१३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शृङ्गवृषः, नपात्) हे स्वतेजोवर्द्धक जनरक्षक ! (यः, ते) यस्तव (प्रणपात्) प्ररक्षकः (कुण्डपाय्यः) यज्ञविशेषः (अस्मिन्) अस्मिन्यज्ञे (मनः) मानसम् (न्यादध्रे) निदधति जनाः ॥१३॥