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वृषा॑ त्वा॒ वृष॑णं हुवे॒ वज्रि॑ञ्चि॒त्राभि॑रू॒तिभि॑: । वा॒वन्थ॒ हि प्रति॑ष्टुतिं॒ वृषा॒ हव॑: ॥

English Transliteration

vṛṣā tvā vṛṣaṇaṁ huve vajriñ citrābhir ūtibhiḥ | vāvantha hi pratiṣṭutiṁ vṛṣā havaḥ ||

Pad Path

वृषा॑ । त्वा॒ । वृष॑णम् । हुवे॑ । वज्रि॑न् । चि॒त्राभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । व॒वन्थ॑ । हि । प्रति॑ऽस्तुतिम् । वृषा॑ । हवः॑ ॥ ८.१३.३३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:13» Mantra:33 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:33


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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्र का दान दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे इन्द्र आपकी कृपा से मैं भी (वृषा) विज्ञानादि धनों को प्रजाओं में देनेवाला हूँ। वह मैं (वृषणम्+त्वा) सर्व कामप्रद तुझको (हुवे) पूजता और आवाहन करता हूँ (वज्रिन्) हे महादण्डधर ! (चित्राभिः) विविध प्रकार की (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ सर्वत्र आप विद्यमान हैं (हि) जिसलिये (प्रतिष्टुतिम्) सर्व स्तोत्र के प्रति आप (ववन्थ) प्राप्त होते हैं, अतः (हवः+वृषा) आपका आवाहन भी सर्वकामप्रद है ॥३३॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! उस दयालु का दान अनन्त-अनन्त है, तुम भी अपनी शक्ति के अनुसार उसका अनुकरण करो ॥३३॥
Footnote: यह अष्टम मण्डल का तेरहवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वज्रिन्) हे वज्रशक्तिवाले ! (वृषा) कामवर्षुक होनेवाला मैं (चित्राभिः, ऊतिभिः) विविध स्तुतियों द्वारा (वृषणम्, त्वा) वृषा आपको (हुवे) आह्वान करता हूँ (हि) क्योंकि आप (प्रतिस्तुतिम्) प्रत्येक प्रार्थना को (ववन्थ) स्वीकृत करते हैं, अतः (वृषा, हवः) आपका आह्वान वृषा=कामनाप्रद है ॥३३॥
Connotation: - हे कामनाप्रद परमेश्वर ! हम लोग कामनाओं की पूर्ति के लिये विविध स्तुतियों द्वारा आपके समीपवर्ती होते हैं। हे प्रभो ! आप हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार करनेवाले हैं, अतएव हमारी कामनाओं की पूर्तिरूप प्रार्थना को स्वीकार करें, ताकि हम उच्चभावोंवाले होकर पदार्थों के आविष्कार द्वारा ऐश्वर्य्यशाली हों और यज्ञादि कर्मों में हमारी सदा प्रवृत्ति रहें ॥३३॥ यह तेरहवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

इन्द्रस्य दानं दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! तव कृपया अहमपि। वृषा=विज्ञानधनादीनां प्रजामध्ये वर्षिताऽस्मि। सोऽहम्। वृषणम्। त्वा=त्वाम्। हुवे=आह्वयामि। हे वज्रिन् महादण्डधर ! चित्राभिः=महाऽऽश्चर्यभूताभिः। ऊतिभिः=रक्षाभिः त्वं सर्वत्र विद्यमानोऽसि। हि=यतः। प्रतिष्टुतिम्=प्रतिस्तोत्रं स्तोत्रं स्तोत्रं प्रति। त्वम्। ववन्थ=संभजसि=प्राप्नोषि। अतस्तव हवोऽपि। वृषा ॥३३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वज्रिन्) हे वज्रशक्तिमन् ! (वृषा) अहमपि वृषा बुभूषुः (चित्राभिः, ऊतिभिः) विविधस्तुतिभिः (वृषणम्, त्वा) वर्षितारं त्वाम् (हुवे) आह्वयामि (हि) यस्मात् (प्रतिस्तुतिम्) प्रत्येकस्तुतिम् (ववन्थ) भजसि त्वम् अतः (वृषा, हवः) तवाह्वानं वृषाऽस्ति ॥३३॥ इति त्रयोदशं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥