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यच्छ॒क्रासि॑ परा॒वति॒ यद॑र्वा॒वति॑ वृत्रहन् । यद्वा॑ समु॒द्रे अन्ध॑सोऽवि॒तेद॑सि ॥

English Transliteration

yac chakrāsi parāvati yad arvāvati vṛtrahan | yad vā samudre andhaso vited asi ||

Pad Path

यत् । श॒क्र॒ । असि॑ । प॒रा॒ऽवति॑ । यत् । अ॒र्वा॒ऽवति॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । यत् । वा॒ । स॒मु॒द्रे । अन्ध॑सः । अ॒वि॒ता । इत् । अ॒सि॒ ॥ ८.१३.१५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:13» Mantra:15 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:15


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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर की स्तुति करते हैं।

Word-Meaning: - (शक्र) हे सर्वशक्तिमन् ! (वृत्रहन्) हे सर्वविघ्नविनाशक देव ! (यद्) यदि तू (परावति) अतिदूर देश में (असि) हो (यद्) यदि तू (अर्वावति) समीपस्थ देश में हो (यद्वा) यद्वा (समुद्रे) समुद्र में या आकाश में हो, कहीं भी तू है, उस सब स्थान से आकर हमारे (अन्धसः) अन्न का (अविता+इत्) रक्षक (असि) होता ही है ॥१५॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! ईश्वर सबकी रक्षा करता है, यह जानना चाहिये ॥१५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शक्र) हे समर्थ (वृत्रहन्) आवरणनाशक परमात्मन् ! (यत्, परावति, असि) चाहें आप दूर हैं (यत्, अर्वावति) चाहें समीप हों (यद्, वा, समुद्रे) चाहे अन्तरिक्ष में हों, सर्वस्थानों से (अन्धसः) भोग्य पदार्थों के (अविता, इत्, असि) रक्षक ही हैं ॥१५॥
Connotation: - हे आवरण=अविद्यानाशक परमात्मन् ! आप सर्वत्र सबको यथाभाग भोग्य पदार्थों का दान देते हुए अपनी व्यापकता से सबको नियम में रखते और सदैव सबकी रक्षा करते हैं। हे प्रभो ! अपने दिये हुए पदार्थों तथा सन्तानों की आप ही रक्षा करें, ताकि आपका दिया हुआ ऐश्वर्य्य हमसे वियुक्त न हो, क्योंकि आप सब प्रकार से समर्थ हैं ॥१५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वरस्य स्तुतिं करोति ।

Word-Meaning: - हे शक्र=हे सर्वशक्तिमन्। सर्वं कर्तुं यः शक्नोति स शक्रः। हे वृत्रहन्=वृत्रान् निखिलविघ्नान् हन्तुं शीलमस्यास्तीति वृत्रहा। हे तादृशेन्द्र ! यद्=यदि। त्वम्। परावति=अतिदूरदेशे। असि=वर्तसे। यद्=यदि। अर्वावति=सन्निकटदेशे। वर्तसे। यद्वा=यदि। समुद्रे=जलनिधौ अन्तरिक्षे वा। वर्तसे। क्वाऽपि वा भवसि। तस्मात् सर्वस्मात् स्थानाद् आगत्य अस्माकम् अन्धसोऽन्नस्य। अविता इत्=रक्षितैव भवसि। इति तव महती कृपा विद्यते ॥१५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शक्र) हे समर्थ (वृत्रहन्) आवरणनाशक ! (यत्, परावति, असि) यद्धि दूरदेशे भवसि (यत्, अर्वावति) यद्वा समीपे वर्तसे (यत्, वा, समुद्रे) यद्वाऽन्तरिक्षे वर्तसे सर्वतः (अन्धसः) पदार्थानाम् (अविता, इत्) रक्षितैव (असि) भवसि ॥१५॥